________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1-%
4-30
%
व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४७०॥
६ शतके অন্বয়ঃ৩ ॥४७०॥
*
*
अंगुल थाय हे, ज्यारे आठ उच्छ्लक्ष्ण श्लक्षिणका मळे त्यारे ते एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका थाय, आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका मळे त्यारे ते एक ऊर्ध्वरेणु; आठ ऊर्वरेणु मळे त्यारे ते एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणु मळे त्यारे ते एक रथरेणु अने आठ रथरेणु मळे त्यारे ते देवकुरुना अने उत्तरकुरुना मनुष्योनुं एक वालाग्र थाय छे. ए प्रमाणे देवकुरुना अने उत्तरकुरुना मनुष्यना आठ वालाग्र ते हरिवर्षना अने रम्यक्नां मनुष्यनो एक वालाग्र, हरिवर्षना अने रम्यकना मनुष्यनां आठ बालाग्र ते हैमवतना अने ऐरवतना मनुष्यनो एक वालाग्र अने हैमवतना अने ऐरवतना मनुष्यनां आठ वालाग्र ते पूर्वावदेहना मनुष्यनो एक वालाग्र, पूर्वावदेहना मनुष्योनां आठ कलाग्र ते एक लिक्षा, आठ लिक्षा ते एक यूवा, आट यूवा ते एक यवमध्य आठ यवमध्य ते एक अंगुल, ए अंगुलना प्रमाणे छ अंगुलनो
एक पाद, बार अंगुलनी एक वितस्ति-वेंत चोवीस अंगुलनी एक रत्नि-हाथ अडतालीश अंगुलनी एक कुक्षि, छन्नु अंगुलनो |एक दंड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मुसल थाय, ए धनुषना प्रमाणे बेहजार धनुष्यनो एक गाउ थाय, चार गाउनुं| | एक योजन थाय, ए योजनना प्रमाणे जे पल्य, आयामवडे अने विष्कंभवडे एक योजन होय, उंचाइमां एक योजन होय अने
जेनो परिधि सविशेष त्रिगुण-त्रण योजन होय, ते पल्यमा एक दिवसना उगेला, बे दिनसना उगेला, त्रण दिबसना उगेला अने बधारेमा वधारे सात रातना उगेला क्रोडो वालाग्रो, कांठा मुधी भर्या होय, संनिचित कर्या होय, खूब भर्या होय अने ते वालाग्रो एवी रीते भर्या होय के जेने अग्नि न बाळे, वायु न हरे, जेओ कोहाइ न जाय, नाश न पामे अने जेओ कोइ दिवस सडे नहिं, 18 त्यारवाद ते प्रकारे वालाग्रना भरेला ते पल्यमांथी सो सो वरसे एक एक वालाग्रने काढवामां आवे, एवी रीते ज्यारे-जेटले काळे ते पल्य क्षीण थाय, निरज थाय, निर्मल थाय, निष्ठित थाय, निर्लेप थाय, अपहृत थाय अने विशुद्ध थाय त्यारे ते काळ पल्योपम
*%
%
%
For Private and Personal Use Only