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७ शतके उद्देशः१ ॥४९८॥
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वीयधूमे पाणभोयणे, जे णं निग्गंथे वा निग्गंधी वा जाव पडिगाहेत्ता जहालद्धं तहा आहारमाहारेइ एस व्याख्या
kणं गोयमा ! संजोयणादोसविप्पमुक पाणभोयणे, एस णं गोयमा! वीतिगालस्म वीयधूमस्स संजोयणादोसविप्रज्ञप्तिः दाप्पमुकस्स पाणभोषणस्स अट्टे पन्नत्त।। (सूत्रं २६७) ।। ॥४९८॥ का [प्र०] हे भगवन् ! अंगारदोषसहित अने धूमदोषसहित संयोजनादोषवडे दुष्ट पानभोजननो शो अर्थ कह्यो छे ? [उ०] हे*
गौतम ! कोइ निर्धन्थ-साधु या साध्वी प्रामुक अने एपणीय अशन, पान, खादिम अने खादिम आहारने ग्रहण करी मूञ्छित, गृद्ध, ग्रथित अने आसक्त थइने आहार करे तो हे गौतम ! ए अंगारदोषसहित पानभोजन कहेवाय. बळी जे जे कोइ साधु या साध्वी पामुक एपणीय अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारने ग्रहण करी अत्यंत अप्रीतिपूर्वक क्रोधथी खिन्न थइने आहार करे तो हे गौतम ! ए धमदोषसहित पानभोजन कहेवाय. कोइ साधु या साध्वी यावत् [आहारने] ग्रहण करीने गुण (स्वाद) उत्पन्न करवा माटे बीजा पदार्थ साये संयोग करीने आहार करे तो हे गौतम ! ए संयोजनादोषवडे दुष्ट पानभोजन कहेवाय. हे गौतम! ए प्रकारे अंगारदोष, धूमदोष अने संयोजनादोषयी दुष्ट पानभोजननो अर्थ कह्यो. [प्र०] हे भगवन् ! हवे अंगारदोषरहित, धूमदोषरहित अने संयोजनादोषरहित पानभोजननो शो अर्थ कह्यो ? [उ०] हे गौतम? जे कोई निर्ग्रन्थ (के निर्ग्रन्थी) यावत् (आहारने) ग्रहण करीने मूर्छारहित यावत् आहार करे, तो हे गौतम ! अंगारदोषरहित पानभोजन कहेवाय. वळी जे कोइ निग्रन्थ के निग्रन्थी यावत् ग्रहण करीने अत्यन्त अप्रीतिपूर्वक यावत् आहार न करे, हे गौतम ! ए धृमदोषरहित पानभोजन कहेवाय. जे कोइ निर्ग्रन्थ के निर्ग्रन्थी यावत् ग्रहण करीने जेवो प्राप्त थाय तेवोज आहार करे (परन्तु खाद माटे वीजा साथे संयोग न करे,) हे मौतम! ए संयोजनादोप
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