Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 170
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४९२॥ ७ शतके उद्देशः १ ॥४९२॥ ते पृथ्वीने खोदता जो कोई त्रस जीवनी हिंसा करे तो हे भगवन् ! तेने ते व्रतमा अतिचार लागे? [उ.] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी. कारण के ते (श्रावक) तेनो वध करवा प्रवृत्ति करतो नथी. [म.] हे भगवन् ! श्रमणोपासके पूर्वे वनस्पतिना वधनुं प्रत्याख्यान कयु होय, ते पृथिवीने खोदता कोई एक वृक्षना मूळने छेदी नांखे तो तेने ते व्रतनो अतिचार लागे? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ योग्य नथी. कारण के ते तेना (वनस्पतिना) वध माटे प्रवृति करतो नथी. ॥ २६२ ॥ समणोवासए णं भंते ! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएसणिज्जणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलामेमाणे किं लब्भइ?, गोयमा! समणोवासए णं तहारूवं समणं वा जाव पडिलाभेमाणे तहारूवस्स | समणस्स वा माहणस्स वा समाहिं उप्पाएति, समाहिकारए णं तमेव समाहिं पडिलभइ। समणोवासए णं भंते ! तहारूवं समणं वा जाव पडिलामेमाणे किं चयति?, गोयमा ! जीवियं चयति दुच्चयं चयति दुक्करं करेति दुल्लहं लहर बोहिं बुज्झइ तओ पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति (सूत्रं २६३) [प्र०] हे भगवन् ! तेवा प्रकारना (उत्तम ) श्रमण या ब्राह्मणने प्रामुक (अचित्त-निर्जीव) अने एषणीय (दोपरहित इच्छवा योग्य) अशन, पान, खादिम अने स्वादिम आहारवडे प्रतिलाभता-सत्कार करता श्रमणोपासकने शो लाभ थाय ? [उ०] हे गौतम ! तेवा प्रकारना श्रमण या ब्राह्मणने यावत् प्रतिलाभतो श्रमणोपासक तेवा प्रकारना श्रमण या ब्राह्मणने समाधि उत्पन्न करे छे, अने समाधि करनार (श्रावक ) ते समाधिने प्राप्त करे छे. [प्र०] हे भगवन् ! तथारूप श्रमणने यावत् पतिलाभतो श्रमणोपासक शेनो त्याग करे? [उ०] हे गौतम ! जीवितनो (जीवननिर्वाहना कारणभूत अन्नादिनो) त्याग करे, दुस्त्यज वस्तुनो त्याग करे, बोधि For Private and Personal Use Only

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