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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४८५॥
६ शतके उद्देशः१० ॥४८५॥
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ठळीया जेटला पण यावत् दर्शावया समर्थ छे ? ए अर्थ समर्थ नथी. ते हेतुथी सुखादिने पण यावत् दर्शाववा समर्थ नथी. ॥२५४
जीवे णं भंते! जीवे २जीवे ?, गोयमा ! जीचे ताव नियमा जीवे, जीवेवि नियमा जीवे । जीवे णं भंते ! नेरइए नेरइए जीवे ?, गोयमा ! नेरइए ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय नेरइए सिय अनेरइए, जीवे णं भंते ! असुरकुमारे असुरकुमारे जीवे?, गोयमा! असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे सिय है णो असुरकुमारे, एवं दंडओ भाणियब्बो जाव वेमाणियाणं । जीवति भंते ! जीवे जीवे जीवति', गोयमा! जीवति ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवति सिय नो जीवति, जीवति भंते ! नेरइए २ जीवति ?, |गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवति २ पुण सिय नेरइए सिय अनेरहए, एवं दंडओ नेयब्वो जाव वेमाणियाणं । भवसिद्धीए ण भंते ! नेरइए २ भवसिद्धीए ?, गोयमा! भवसिद्धीए सिय नेरइए सिय अनेरहए, नेरइएविय सिय भवसिद्धीए सिय अभवसिद्धीए, एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं ॥ (सूत्रं २५५)॥
[प्र०] हे भगवन् ! शुं जीव जीव ( चैतन्य ) छे ? के चैतन्य जीव छ ? [उ.] हे गौतम! जीव नियमे चैतन्य जीव छे अने जीव चैतन्य पण नियमे जीव छे. [प्र.] हे भगवन् ! जीव नैरयिक छ ? के नैरयिक जीव छे ? [उ.] हे गौतम ! नैरयिक तो नियमे |जीव छे अने जीव तो नैरयिक पण होय तथा अनैरयिक पण होय. [प्र.] हे भगवन् ! जीव असुरकुमार छे? के असुरकुमार जीव
छ [उ०] हे गौतम ! असुरकुमार तो नियमे जीव छे अने जीव तो अमुरकुमार पण होय तथा अमुरकुमार न पण होय. ए प्रमाणे यावत् वैमानिक सुधी दंडक कहेवो. [प्र.] हे भगवन् ! जीवे प्राणधारण करे ते जीव कहेवाय ? के जीव होय ते प्राणधारण करे ?*
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