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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥ ४०८ ॥
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जैम नैरयिको माटे कछु ं एम असुरकुमारो पण बधे छे, घटे छे. अने जघन्ये, एक समय सुधी अने उत्कृष्टथी अडताळीस मुहूत सुधी अवस्थित रहे छे, ए प्रमाणे दसे प्रकारना पण भवनपति कहेवा. एकेन्द्रियो वधे पण छे, घटे पण छे अने अवस्थित पण रहे छे, ए त्रणे बडे पण जघन्ये एक समय अने उत्कृष्टे आवलिकानो असंख्य भाग, एटलो काळ जाणवो वे इंद्रियो तेज प्रमाणे वधे छे, घटे छे; अने तेओनुं अवस्थान जघन्ये एक समय अने उत्कृष्टे वे अन्तर्मुहूर्त सुधीनुं जाणवुं. ए प्रमाणे यावत्- चउरिंद्रिय सुधीना जीवो माटे जाणवुं. बाकीना बधा जीवो केटलो काळ वधे छे, केटलो काळ घंटे छे, ए बधुं तथैव पूर्वनी पेठे जाणवुं अने तेओना | अवस्थान काळमां आ प्रमाणे नानात्व भेद छे; ते जेमके, सम्मूर्च्छिमपंचेंद्रिय तिर्यंचयोनिकोनो अवस्थान काळ अंतर्मुहूर्त छे, गर्भज पंचेंद्रिय तिर्यंचयोनिकोनो अवस्थान काळ चोवीश मुहूर्त छे, सम्मूर्छिम मनुष्योनो अवस्थान काळ अडतालीश मुहूर्त छे, गर्भज मनुष्योनो अवस्थान काळ चोवीश मुहूर्त छे; वानभ्यंतर, ज्योतिषिक, सौधर्म अने ईशान देवलोकमां अवस्थान काळ अडतालीश मुहूर्त छे, सनत्कुमार देवलोकमां अढार रात्रिदिवस अने चालीश मुहूर्त अवस्थान काळ छे, माहेंद्र देवलोकमां चोवीश रात्रिदिवस अने वीश वीश मुहूर्त अवस्थान काळ छे. ब्रह्मलोकमां पीस्तालीश रात्रिदिवस अवस्थान काळ छे, लांतक देवलोकमां नेधुं रात्रिदिवस अवस्थान काळ छे, महाशुक्र देवलोकमां एकसो साठ रात्रिदिवस अवस्थान काळ छे, सहस्रार प्राणत देवलोकमां संख्येय मासो सुधी अवस्थान काळ छे, आरण अने अच्युत देवलोकमां संख्येय वर्षो अवस्थान काळ छे, ए प्रमाणे ग्रैवेयक देवोनो, विजय, वैजयंत, जयंत अने अपराजित देवोनो असंख्य हजार वर्षो सुधी अवस्थान काळ जाणवो, तथा सर्वार्थ सिद्धमां पल्योपमना संख्येय भाग सुधी अवस्थान काळ जाणवो. अने एओ, जघन्ये एक समय सुधी अने उत्कृष्टे आवलिकाना असंख्य
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५ शतके उद्देशः ८
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