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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४५३॥
- तमुक्कायस्स ण भंते ! कति नामधेना पण्णत्ता ?, गोयमा ! तेरस नामधेजा पण्णत्ता, तंजहा-तमेति वा तमुक्काएति बा अंधकारेइ वा महांधकारेइ वा लोगंधकारेह वा लोगतमिस्सेइ वा देवंधकारेति वा देवतमिस्सेति- ६ शतके वा देवारन्नेति वा देवाहेति वा देवफलिहेति वा देवपडिक्खोभेति वा अरुणोदएत्ति वा समुहे ।। तमुक्काए णं भंते ! | उद्देश: | किं पुढवीपरिणामे आउपरिणामे जीवपरिणामे पोग्गलपरिणामे ?, गोयमा! नो पुढविपरिणामे, आउपरिणामेविल॥४५३॥ जीवपरिणामेवि पोग्गलपरिणामेवि । तमुक्काए णं भंते ! सव्वे पाणा भूया जीवा मत्ता पुढविकाइत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववन्नपुब्बा ?, हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अणतखुत्तो, णो चेव ण यादरपुढविकाइयत्ताए | बादरअगणिकाइत्ताए वा ।। ( सूत्रं २४०)॥
[प्र०] हे भगवन् ! तमस्कायनां नामो केटलां कह्यां छे ? [उ०] हे गौतम ! तमस्कायनां तेर नामो कहां छे, ते जेमके १ 8| तम, २ तमस्काय, ३ अंधकार, ४ महांधकार, ५ लोकांधकार, ६ लोकतमिस्र, ७ देवांधकार, ८ देवतमिस्र, ९ देवारण्य, १० देव
व्युह, ११ देवपरिघ, १२ देवप्रतिक्षोभ अने १३ अरुणोदक समुद्र. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्काय शुं पृथिवीनो परिणाम जे? पाणीनो परिणाम छे ? जीवनो परिणाम छे के पुद्गलनो परिणाम छे. [उ०] हे गौतम ! तमस्काय पृथिवीनो परिणाम नथी, पाणीनो पण परिणाम छे, जीवनो पण परिणाम छे अने पुद्गलनो परिणाम छे. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्कायमा सर्व प्राणो, भूतो, जीवो अने सत्वो पृथिवीकायपणे यावत् त्रसकाथिकपणे उपन्नपूर्व-पूर्वे कहेला उपज्यां छे ? [उ. हे गौतम ! हा, अनेकवार अथवा अनंतवार पूर्वे उत्पन्न थया छे पण बादर पृथिवी कायपणे अने बादर अग्निकायिकपणे नथी थया. ॥ २४ ॥
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