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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४५२॥
६ शतके उद्देशः ५
॥४५२।।
444-
4AKAL
पच्छा सीहं २ तुरियं २ खिप्पामेव वीतीवएज्जा ॥
[प्र.] हे भगवन् ! तमस्कायनां घर छे के गृहापण छे! [उ०] हे गौतम : ते अर्थ समर्थ नथी. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्कादायमां गाम छे के यावत् संनिवेशो छ ? [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी. [प्र०] हे भगवन : तमस्कायमा उदार मोटा मेघ
संखेद पामे छे ? संमृर्छ छे ? अने वर्षण वरसे छे ? [उ०] हे गौतम ! हा, तेम छे. [प्र.] हे भगवन् ! शुं तेने देव करे छे ? असुर करे छे ? के नाग करे छे ? [उ०] हे गौतम ! देव पण करे छे ? असुर पण करे छे, अने नाग पण करे छ. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्कायमा बादर स्तनितशब्द छ ? अने बादर विजळी छ ? [उ०] हा, छे. [प्र.] हे भगवन् ! शुं तेने देव या असुर या नाग करे छ ? [उ०] हे गौतम!त्रणे पण करे छे. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्कायमा बादर पृथिवीकाय छ ? अने बादर अग्निकाय छे ? [उ.] हे गौतम! ते अर्थ समर्थ नथी. अने आ जे निषेध छे ते विग्रहगतिसमापन्न सिवाय समजबो अर्थात् विग्रहगति समापन्न चादर पृथिवी अने अग्नि होइ शके छे. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्कायमां चंद्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र अने तारारूपो छे? [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी, पण ते चंद्रादि, तमस्कायनी पडखे छे. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्कायमां चंद्र नी प्रभा के सूर्यनी प्रभा होय छे ? [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी, कारण के, ते प्रभा तमस्कायमा छे पण कादृषणिका-पोताना आत्माने दुषित | करनारी छे. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्काय वर्णथी केवो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! वर्णवडे तमस्काय काळो, काळी कांतिबाळो, गंभीर, रुवाटा उभा करनार, भीम, उत्कंपनी हेतु अने परमकृष्ण कह्यो छे, अने ते तमस्कायने जोइने, जोतां वारज केटलाक देव पण क्षोभ पामे,अने कदाच कोइ देव तमस्कायमा प्रवेश करे तो पछी शरीरनी त्वराथी अने मननी त्वराथी जलदी ते तमस्कायने उल्लंघी जाय.
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