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न्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४५७||
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तोओ णं भंते ! किं पुढविपरिणामाओ आउपरिणामाओ जीवपरिणामाओ पुग्गलपरिणामाओ?, गोयमा ! पुढविपरिणामाओ, नो आउपरिणामाओ,जीवपरिणामओवि पुग्गलपरिणामाओवि । कण्हरातीसु णं भंते! सब्वे P६ शतके पाणा भूया जीवा सत्ता उववन्नपुव्वा ? हंता गोयमा! असई अदुवा अणंतखुत्तो, नो चेव णं बादरआउकाइय- उद्देशः५ त्ताए वा बादरअगणिकाइयत्ताए वा बादरवणप्फतिकाइयत्ताए वा ( सूत्रं २४१)
॥४५७॥ [प्र०] हे भगवन् ! शुं तेने देव, असुर के नाग करे छे? [उ०] हे गौतम ! देव करे छे, असुर के नाग नथी करतो. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णराजिओमां बादर स्तनित शब्दो छे! [उ.] हे गौतम! जेम मोटा मेघो कह्या तेम जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णराजिओमां बादर अप्काय, वादर अग्निकाय अने बादरवनस्पतिकाय छे ? [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी अने आ निषेध, विग्रहगति समापन्न जीव सिवाय वीजा जीवो माटे जाणवो. [प्र.] हे भगवन् ! कृष्णराजिओमां चंद्र, मर्य, ग्रहगण, नक्षत्र अने ताराओ छे ? | [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी. [प्र०] हे भगवन् ! कृष्णराजिओमां चंदनी कांति छ ? सूर्यनी कांति छ? [उ०] हे गौतम!: ते अर्थ समर्थ नथी. [प्र.] हे भगवन् ! कृष्णराजिओ वर्णवडे केवी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! काळी यावत् तमस्कायनी पेठे | भयंकर होवाथी देव पण एने जलदी न उल्लंधी जाय. प्र०] हे भगवन् ! कृष्णराजिनां केटलां नामधेय कयां छे? [उ०] हे गौतम ! | कृष्णराजिनां आठ नाम कह्यां छे, ते जेमके, १ कृष्णराजि, २ मेघराजि, ३ मघा, ४ माघबती, ५ वातपरिघा, ६ वातपरिक्षोभा, | | ७ देवपरिघा अने ८ देवपरिक्षोभा. [प्र०] हे भगवन् ! शुं कृष्णराजि पृथ्वीनो परिणाम छे ? जलनो परिणाम छे ? जीवनो परिणाम छ ? के पुद्गलनो परिणाम छ ? [उ०] हे गोतम ! कृष्णराजि पृथ्वीनो परिणाम छे पण जलनो परिणाम नथी. तथा जीवनो पण
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