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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४१३॥
शतके उद्देशः९ ॥४१३॥
| एवं बुच्चइ, एवं जाव थणियकुमाराणं, पुढविकाइया जाव तेइंदिया जहा नेरइया । चउरिंदियाणं भंते ! | किं उज्जोए अंधयारे ?. गोयमा ! उज्जोएवि अंधयारेवि, से केणट्टेणं०, गोयमा ! चउरिदियाणं सुभासुभा पोग्गला सुभासुभे पोग्गलपरिणामे, से तेणटेणं एवं जाव मणुस्साणं । वाणमंतरजोतिमवेमाणिया जहा असुरकुमारा । (सूत्रं २२३)।
[प्र०] हे भगवन् ! दिवसे उद्द्योत अने रात्रिमा अंधकार होय छे ? [उ०] हा, गौतम ! यावत् अंधकार होय छे. [प्र०] ते क्या हेतुथी ? [उ०] हे गौतम ! दिवसे सारां पुद्गलो होय हे अने सारो पुद्गल परिणाम होय छे, | रात्रिमा अशुभ पुद्गलो होय छे अने अशुभ पुद्गल परिणाम होय छे ते हेतुथी एम के. [प्र०] हे भगवन् ! शुं नैरयिकोने प्रकाश | होय छे के अंधकार होय हे. [उ०] हे गौतम ! नैरयिकोने प्रकाश नथी पण अंधकार . [प्र०] ते क्या हेतुथी? [उ०] हे गौतम ! नैरयिकोने अशुभ पुद्गल परिणाम छे, ते हेतुथी तेम छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं असुरकुमारोने प्रकाश छे, के अंधकार छे?, [उ०] हे गौतम ! असुरकुमारोन प्रकाश छे पण अंधकार नथी. [प्र०] ते क्या हेतुथी ? [उ०) हे गौतम ! असुरकुमारोने शुभ पुद्गलो छे, शुभ पुद्गल परिणाम के माटे ते हेतुथी यावत्-तेओने प्रकाश छे एम कहेवाय . ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. जेम नैरयिको कह्या तेम पृथ्वीकायथी मांडी यावत् त्रेइंद्रिय सुधीना जीवो जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! शुं चउरिंद्रियोने प्रकाश होय छे के अंधकार होय छे ? [उ.] हे गौतम ! तेओने प्रकाश पण होय छे ने अंधकार पण होय छे. [प्र०] ते क्या हेतुथी ? [उ०] हे गौतम ! चउरिंद्रियोने शुभ तथा अशुभ पुद्गल होय छे अने शुभ तथा अशुभ पुद्गल-परिणाम
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