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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥४३४॥
पुरिसो बंधइ नपुंसओ बंधइ ? पुच्छा, गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, एवं तिन्निवि भाणियब्वा, | नोइत्थीनोपुरिसोनोनपुंसओ न बंधइ॥ णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं किं संजए बंधइ असंजए०, एवं |६ शतके
संजयासंजए बंधइ नोसंजयनोअसंजएनोसंजयासंजए बंधति ?, गोयमा ! संजए सिय बंधति सिय नो उद्देशः३ | बंधति, असंजए बंधइ, संजयासंजएवि बंधइ, नोसंजएनोअसंजएनोसंजयासंजए न बंधति, एवं आउगवजाओ। ॥४३४॥ सत्तवि, आउगे हेडिल्ला तिन्नि भयणाए, उवरिल्ले ण बंधइ ।।
[प्र.] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय शुं स्त्री बांधे ? पुरुष बांधे ? के नपुंसक बांधे ? वा नोस्त्री-नोपुरुष नोनपुंसक एटले जे स्त्री, | पुरुष के नपुंसक न होय एवो जीव बांधे ? [उ०] हे गौतम ! स्त्री पण बांधे, पुरुष पण बांधे, अने नपुंसक पण बांधे. पण जे नोस्त्री नोपुरुष-नोनपुंसक होय ते कदाच बांधे अने कदाच न बांधे ए प्रमाणे आयुष्यने वर्जीने साते कर्मप्रकृतिओ माटे जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! आयुष्यकर्म शुं स्त्री बांधे ? पुरुष बांधे ? के नपुंसक बांधे ? ए प्रमाणे पूर्ववत् प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! स्त्री बांधे | अने न पण बांधे. ए प्रमाणे त्रणे माटे वीजा वे माटे पण जाणवू अने जे नो स्त्री नोपुरुष नोनपुंसक होय ते तो आयुष्यकर्म न | बांधे [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म शुं संयत बांधे ? असंयत बांधे ? के संयतासंयत बांधे ? वा जे नो संयतनोअसंयत-नो.
संयतासंयत होय ते बांधे ? [उ.] हे गौतम ! कदाच संयत बांधे, कदाच न बांधे; असंयत बांधे अने संयतासंयत पण बांधे पण * |जे नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासयत होय ते तो न बांधे. ए प्रमाणे आयुष्यने वर्जीने साते कर्मप्रकृतिओ माटे जाणवू, आयुष्यकर्मना संबंधमां नीचेना त्रण संयत, असंयत अने संयतासंयत माटे भजनावडे जाणवू बांधे अने न बांधे एम जाणवू अने उपरनो
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