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व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥३९॥
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| शिक स्कंधने काळथी केटलुं लांचं अंतर होय? [उ०] हे गौतम ! जघन्य एक समय अने उत्कृष्टथी अनंत काळनुं अंतर छे, ए प्रमाणे यावत् अनंतप्रदेशिकस्कंध सुधी जाणी लेवु. [म.] हे भगवन् ! एक प्रदेशमा स्थित सकंप पुद्गलने काळथी केटलुं लावू
५ शतके अंतर होय एटले एक प्रदेशमा स्थित पुद्गल पोतानुं कंपन पडतुं मेले तो तेने फरीथी कंपन करता केटलो काळ लागे? [उ०] हे
उद्देशः७ गौतम ! जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी असंख्यकाळ सुधीनुं अंतर होय अर्थात् ते पुद्गल ज्यारे पोताना कंपथी अटके अने ॥३९४॥ फरीथी कंपवू शरु करे तेटलामा ओछामा ओछो एक समय अने वधारेमां वधारे असंख्य काळ लागे, ए प्रमाणे यावत् असंख्यप्रदेशस्थित स्कंधो माटे पण समजी लेवू. [प्र०]हेभगवन् ! एक प्रदेशमा स्थितनिष्कंप पुद्गलने काळथी केटलुं लांबुं अंतर होय अर्थात् एक निष्कंप पुद्गल पोतानी निष्कंपता छोडी दे अने तेने फरीथी निःकंपता प्राप्त करवामां केटलो काळ लागे ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी आवलिकानो असंख्येय भाग, ए प्रमाणे यावत् असंख्य प्रदेशस्थित स्कंधो माटे पण समजी लेवु. वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, सक्ष्मपरिणत अने बादरपरिणतोने माटे जे तेओनो संचिट्ठणा-स्थितिकाळ कह्यो छे तेज अंतरकाळ छे, एम कहे. [प्र०] हे भगवन् ! शब्दपरिणत पुद्गलने काळथी केटलु लांबु अंतर होय ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी एक समय है। | अने उत्कृष्टथी असंख्यकाळ अंतर होय एटले जे पुद्गल शब्दरूपे परिणम्युं होय, पार्छ फरीवार तेने शब्दरूपे परिणमवामा ओछामां
ओछु एक समय अने वधारेमां वधारे असंख्य काळ जोइए. [प्र०] हे भगवन् ! अशब्दपरिणत पुद्गलने काळथी केटलुं लांबु अंतर | होय ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी आवलिकानो असंख्येय भाग अंतर होय एटले अशब्दपरिणत पुद्गलने पोतानो अशब्दपरिणतपणानो स्वभाव मूकी पार्छ तेज स्वभावमा आवतां ओछामा ओछु एक समय अने वधारेमां वधारे
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