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|| मंगलाचरण || यः सर्वाणि घरा घराणि विधिवव्याणि तेषां गुणान्, पर्यायानपि भूत भावि भवतः सर्वान् सदा सर्वदा । जानीते युगपत् प्रतिक्षणमतः सर्वज्ञ इत्युच्यते, सर्वज्ञाय जिनेश्वराय महते बीराय तस्मै नमः।
जैन धर्म का सामान्य स्वरूप
अन्त रहित इस संसार के भ्रमर रूपी जाल में फंसकर भ्रमण करनेवाले जीव कोटि को कर्मपाश से मुक्त कर नित्य पद जो कि सुखमय है उनमें जो पहुँचनेवाला हैं वही धर्म है । इसी धर्म को भगवान महावीर स्वामी ने प्राणी मात्र के हित के लिए प्रतिपादन किया है :समन्तभद्र प्राचार्य का वचन :
देशयामि समीचीन धर्म कर्मनिवर्हणम् ।
संसारवुःस्वतः सत्वान् यो घरत्युत्तमें सुखे ।। मैं उस समीचीन धर्म का निर्देश करता हूँ जो कर्मों का विनाशक है और जीवों को संसार के दुःख से निकालकर उत्तम-सुख धारण कराता है।
व्याख्या-इस बाक्य में जिस धर्म के स्वरूप-कथन की देशयामि पद के द्वारा प्रतिज्ञा की गई है उसके तीन खास विशेषण हैं-सबसे पहला तथा मुख्य विशेषण है समीचीन, दुसरा कर्मनिवर्हण और तीसरा दुख से उत्तम-सुख का धारण । पहला विशेषण निर्देश धर्म की प्रकृति का द्योतक है और शेष दो उसके अनुष्ठान-फल का सामान्यत: (संक्षेप में) निरूपन करने वाले हैं।
कर्म शब्द विशेषण-शून्य प्रयुक्त होने से उसमें द्रव्यकर्म और भावकर्म रूप से सब प्रकार के अशुभादि कर्मा का समादेश है, जिनमें रागादिक भावकर्म और ज्ञानाबरणादिक द्रव्यकर्म कहलाते हैं । धर्म को कर्मों का निवर्हण-विनाशक बतलाकर इस विशेषण के द्वारा यह सूचित किया गया है कि वह वस्तुतः कर्मबन्ध का कारण नहीं, प्रत्युत इसके बन्ध से छुड़ाने वाला होता है
और जो बन्धन से छुड़ाने वाला होता है। वही दुःख से निकालकर सुख को धारण कराता है, क्योंकि बन्धन में पराधीनता में-सुख नहीं किन्तु दुःख ही दुःख है। इसी विशेषण की प्रतिष्ठा पर तीसरा विशेषण चरितार्थ होता है। और इसीलिए वह कनिवर्हण विशेषण के अनन्तर रक्खा गया जान पड़ता है।
सूख जीवों का सर्वोपरि ध्येय है और उसकी प्राप्ति धर्म से होती है। धर्म सुख का साधन (कारण) है और साधन कभी साध्य (काय) का विरोधी नहीं होता, इसलिए धर्म से वास्तव में कभी दुःख की प्राप्ति नहीं होती, वह तो सदा दुःखों से छडानेवाला ही है। इसी बात को लेकर धी गुणभद्राचार्य ने आत्मानुशासन में निम्न वाक्य के द्वारा सुख का आश्वासन देते हुए उन लोगों को धर्म में प्रेरित किया है जो अपने सुख में बाधा पहुँचने के भय को लेकर धर्म से बिमुख बने