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क्रम
चित्र-सूची
पृष्ठ संख्या प्रथम अध्याय जल में जीव द्वितीय अध्याय भूलोक-सामान्य लोक-भूमंडल-भूगोल सामान्ग (2)-भूगोल सामान्य (ख)-जम्बु दीप-तीन लोक तीन लोक-अधोलोक-मध्य लोक-ढाई द्वीप-भरत क्षेत्र विजयाचं पर्वत--सुमेरु पर्वत-पाण्डुकबन नन्दन वन व सौमनस वन-इस वन की पुष्करिणी में इन्द्र सभा की रचना-पाण्डुक शिला-नाभि गिरि गज दन्त-यमक व कांचन गिरि–पद्मद्रह-पद्मद्रह का कमल-देव कुरू व उत्तर कुरू-भरत क्षेत्रजम्बू व शाल्मली वृक्ष स्थल-वृक्ष की मूलभूत प्रथमभूमि--विदेह का कच्छा क्षेत्र-सागर तल व पातालजम्बूद्वीप व लवण समुद्र-लवण सागर-उत्कृष्ट पाताल--नन्दीश्वर द्वीप-मानुषोत्तर पर्वत कुण्डलवर पर्वत व द्वीप-रुचकवर पर्वत व द्वीप (क)-रुचकवर पर्वत व द्वीप (ख)-पाण्डुकवन तृतीय अध्याय श्री भगवान ऋषभनाथ और श्री महावीर स्वामी? कल्प वृक्ष-गृहांग कल्प वृक्ष-भाजनांग कल्प वृक्ष-भोजनांग कल्प वृक्ष-पानांग कल्प वृक्ष-वस्त्रांग कल्प वृक्ष-भूषणांग कल्प वृक्ष-मालांग कल्प वृक्ष.-दोपांग कल्प वृक्ष-ज्योतिरांग कल्प वृक्ष-वाद्यांगकल्पवृक्ष कुलकर प्रतिश्रुति-कुलकर सम्मति-कुलकर क्षेमंकर-कुलकर क्षेमन्धर-कुलकर समिकर-कुलकरसीमंधर-कुलकर विमलवाहन-कुलकर चक्षुष्मान-कुलकर यशश्वी-कुलकर अभिचन्द्र-कुलकर चन्द्राभकुलकर मरूदेव-कुलकर प्रसेनजित--कुलकर नाभिराय-कुलकर ऋषभनाथ-कुलकर भरत चक्रवर्ती चतुर्थ अध्याय श्री १००८ भगवान महावीर स्वामो-पंच परमेष्ठी-श्रोता के लक्षण-चौबीस तीर्थकर-श्रुत केवलीपूर्व विदेह प्राकार-भगवत् भक्ति, श्रावक के लिए उपदेश-श्री १००८ भगवान महावीर स्वामी का पूर्वभव पुरूरवा भील-पुरूरवा भौल हिरण का शिकार करते हुए-मुनिराज के द्वारा पुरूरवा को उपदेशमारीचि की परित्राजक दीक्षा-समवशरण रचना-मारीचि कुमार अपने माता-पिता के साथ भगवान ऋषभदेव जी का एक हजार वर्ष तक विहार-क्षुषा तृषा से पीड़ित साघु जन मारीचि आदि की परिव्राजक दीक्षा-अग्निसिंधुकी परिव्राजक दीक्षा-राजा कनकाज्वलको वैराग्य-राजा कनकोज्वल और रानी कनकवती राजा, कनकोज्वल वंदना करते हुए-राजा कनकोज्वल को मुनिराज का उपदेश-कपिल अपनी स्त्री के साथ परियाजक दीक्षा-अग्निमित्र का वराग्य-भारद्वाज ने परिव्राजक दीक्षा ग्रहण कर ली-जरक निगोद की पर्यायें-निगोद जीव का स्थान-गौतम ब्राह्मण अपनी स्त्री के साथ वेश्या, शिकारी, हाथी, गधा, नपुंसक के भव - सांडिल्य अपनी स्त्री के साथ--पुत्र के साथ परिव्राजक दीक्षा - विश्वभूति राजा जैनी रानी के साथ विश्वनन्द, विशाख भूति युद्ध में जाते हुए-विश्वनंदिविशाखनंदि में युद्ध विशाखनदि ने विश्वनंदि का बागोचा मांगा, विश्वनंदि युद्ध जीतकर वापिस पाते हुए 'षडलेश्या-विश्व भूति रानी, और पुत्र विश्वनंदि के साथ-विश्वभूति ने श्रीधर मुनिराज से दीक्षा धारण कर ली-विश्वनंदि ने विशाखनंदि को राज्य का भार प्रदान किया-माहेन्द्र स्वर्ग में थावरक्ष जोव-विश्वभूति रानी और पुत्र के साथ, विश्वनन्दि अपनी रानी के साथ क्रीडा करते हुए -प्रिय मित्र कुमार चक्रवर्ती को विभूति-विश्वनन्दि मुनिराज को गाय ने सींग माराविश्वनंदि मुनिराज ने विशाखनंदि को शाप दिया-विशाखभूति के महल में विशाखनंदि का जन्मोत्सव मुनिराज तप में लीन-विशाख भूति को बैराग्य-विशाख भूति मुनिराज-विशाखभूति मुनिराज तपश्चरण करते हुए-विश्वनन्दि का जीव महाशुक्र स्वर्ग में विशाखनंदि पत्थर की शिला के नीचे छुप गया विश्वनंदि ने मुष्टि प्रहार से शिला को तोड़ दिया-विश्वनंदि ने दीक्षा धारण कर ली-प्रश्वग्रीव का जन्म-प्रकीर्ति का जन्म-ज्वलनजटी, स्त्री और पुत्री के साथ-बलभद्र का वैराग्य बलभद्र का रनि
madrasi
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