Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha
Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar
Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya

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Page 11
________________ रच साधुसाध्वी विधि ++XXXXXXAXI बाद उत्तर दिशा या ईशान कोणके सामने मुख करके खमा० देकर कहे-'इच्छा संदि०भग० ! चैत्यवंदन | करूं ?, इच्छं' कह कर श्रीसीमंधर स्वामीका चैत्यवंदन कहे नमुत्थुणं० कहते हुए "ठाणं संपत्ताणं" की जगह "ठाणं संपाविय कामस्स नमो जिणाणं० नमोऽहत्" कह कर श्रीसीमंधर स्वामी का स्तवन कहे, बाद जय . नवीयराय० अरिहंत चेइयाणं० अन्नत्थ० कह कर एक नवकारका काउस्सग्ग करे, पार कर नमोऽर्हत्० कह कर सीमंधर स्वामीकी १ थुइ कहे । इतना करलेनेके बाद भी यदि पडिलेहणका वख्त न हुआ हो ? तो सिद्धा. चलजीका चैत्यवंदन कह कर "जं किंचिं नाम तित्थं० नमुत्थुणं० जावंति चेइयाइं० जावंत केवि साहू० नमो में हत्०" कह कर सिद्धाचलजीका स्तवन कहे, बाद जय वीयराय० अरिहंत चेइयाणं० अन्नत्थ० कह कर एक नवकारका काउस्सग्ग करे, पार कर नमोऽर्हत कह कर सिद्धाचलजीकी एक थुइ कहे। इन दोनों चैत्यवंदनोंके । करने का नियम नहीं है, यदि समय हो ? तो कर लेवे और समय न हो ? तो नहीं भी करें। XXXANTARXXXXXXAZAX ASAR ___ JainEducation intend 2 010_05 For Private & Personal use only W wwjainelibrary.org

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