Book Title: Avashyakiya Vidhi Sangraha Author(s): Labdhimuni, Buddhisagar Publisher: Hindi Jainagam Prakashak Sumati Karyalaya View full book textPage 9
________________ विधि साधुसाध्वी साथमें हो? तो"आयरिय उवज्झायः" कह कर करेमि भंते! इच्छामि ठामि०तस्स उत्तरि अन्नत्य उस्ससिएणं० ॥५॥ कह कर तप चिंतवणी काउस्सग्ग करे, काउस्सग्गमें छम्मासी ( १) तपका चितवन करे जो भगवान् श्रीमहावीर || स्वामी ने छद्मस्थ (२) अवस्था में कियाथा, यदि तप चिंतवन नहीं आता हो ? तो ६ लोगस्स गिणे, पार कर प्रगट लोगस्स कह कर छठे आवश्यककी मुहपत्ति पडिलेहे और दो वांदणे देकर डाबा गोडा ऊँचा करके "सद्भक्त्या , देवलोके” इत्यादि अथवा "सकल तीर्थ वंदुं कर जोड" इत्यादि तीर्थ नमस्कार कहे, बाद 'इच्छकारी भग०! पसायकरी पञ्चक्खाण करावोजी' ऐसा कह कर मनमें धारा हुआ पञ्चख्खाण गुरु मुखसे करे, बाद, (३) 'इच्छामो || * अणुसहिँ नमो खमासमणाणं नमोऽर्हत्' (४) कह कर " परसमय तिमिर तरणिं" (५) की तीन गाथा कहे । और नमुत्थुणं० कह कर आगे लिखे मुजब चार थुइसे देववंदन करे 5*XXXXXXXXASIS RAEXXXXXXXXXXX (१) छम्मासी तप चितवन के लिये नंबर ३ 'छम्मासी तप चितवन विचार' देखो। (२) दीक्षा लिये बाद जब तक केवल शान नहीं | होवे तब तक छद्मस्थ अवस्था कहाती है । (३) पहले गुरु बोल जाय बाद सब जणे बोले। (४) साध्विओं को नमोऽईद किसी जगह नहीं कहना चाहिये । (५) इसकी एक गाथा पहले गुरु बोल देवे बाद सब जणे तीनों गाथा कहें। Jain Education Internal 2 010_05 For Private & Personal use only Answw.jainelibrary.org.Page Navigation
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