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साधुसाध्वी
॥६॥
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खडे होकर अरिहंत चेइयाणं० अन्नत्थ उस्ससिएणं० कह कर १ नवकारका काउस्सग्ग करे, पार कर नमोऽर्हत्० कह कर पहली थुइ कहे, बाद लोगस्स० सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं० अन्नत्थ० कह कर १ नवकारका काउसग्ग करे, पार कर दूसरी थुइ कहे, बाद पुक्खर वर दीवऽड्ढे ० सुअस्स भगवओ करोमि काउस्सग्गं० वंदण वत्ति| आए० अन्नत्थ० कह कर १ नवकारका काउस्सग्ग करे, पार कर तीसरी थुइ कहे, बाद सिद्धाणं बुद्धाणं० वेयाव|च्चगराणं० अन्नत्थ० कहकर १ नवकार का काउस्सग्ग करे, पार कर नमोऽर्हत्० कह कर चौथी थुइ कहे, बाद बैठ कर नमुत्थुणं० कह कर पांच खमासमणे देवे - पहला खमा देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! बहुवेल संदिसाउं ?, इच्छं' दूसरा खमा० देकर 'इच्छा० संदि० भग० ! बहुवेल करूं?, इच्छं' तीसरा खमा० देकर 'आचार्य मिश्र ' चौथा खमा० देकर 'उपाध्याय मिश्रं' पांचवां खमा० देकर 'सर्व साधून' इस तरहसे कहे ।
॥ इति राइय पडिकमण विधिः ॥
* करने लायक स्वाध्याय (सज्झाय ) ध्यान आदि कृत्य भी साधुओंको आचार्य (गुरु) की आज्ञासे करने कल्पते हैं, बिना आशा नहीं, इस वास्ते छोटे कृत्योंकी एक साथ ही आशा लेनेके लिये साधु लोग बहुबले करते हैं (पंचवस्तुक गाथा ५५८ पृ० ९१ )
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विधि -
संग्रह:
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