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दैनिक जागरण (कानपुर) दिनांक 17.7.02, नवभारत ( इन्दौर ) ( अगस्त - 02), दैनिक भास्कर ( इन्दौर) दिनांक 28.08.02 में एक समाचार प्रकाशित हुआ जिसके अनुसार महात्मा बुद्ध का जन्म परम्परागत रूप में मान्य बुद्ध की जन्मभूमि लुम्बिनी (नेपाल) के स्थान पर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर के बाहरी इलाके में स्थित कपिलेश्वर के समीप स्थित लुम्बिनी ग्राम में हुआ था। भास्कर में प्रकाशित समाचार हम यहाँ आविकल रूप में उद्धृत कर रहें
हैं।
" महात्मा बुद्ध के जन्म स्थान को लेकर विवाद तूल पकड़ने लगा है। दो जाने-माने इतिहासकारों और कुछ पुरातत्वेत्ताओं ने दावा किया है कि बुद्ध का जन्म उड़ीसा के प्राचीन गांव लुम्बिनी में हुआ था न कि नेपाल के लुम्बिनी गांव में।
उड़ीसा संग्रहालय के 15 शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने जुलाई- 02 में दावा किया था कि महात्मा बुद्ध का जन्म भुवनेश्वर के बाहरी इलाके स्थित प्राचीन कपिलेश्वर गांव के नजदीक लुम्बिनी में हुआ था। उनका दावा है कि बुद्ध नेपाल के लुम्बिनी में नहीं बल्कि उड़ीसा के लुम्बिनी में जन्में हैं। बौद्ध इतिहास के विशेषज्ञ माने जाने वाले मन्मथनाथ दास ने कहा कि यूं तो उन्होंने इस सिलसिले में पुरातात्विक साक्ष्य नहीं देखे हैं, लेकिन इसकी संभावना है कि बुद्ध का जन्म उड़ीसा के लुम्बिनी गांव में हुआ होगा । दास ने आई.ए.एन.एस. से बातचीत करते हुए कहा कि उन्होंने बौद्ध धर्म और इतिहास का गहरा अध्ययन किया है। मौजूद लिखित साक्ष्यों से पता चलता है कि बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था, लेकिन इसके पक्ष में पुरातात्विक साक्ष्य कमजोर हैं। यह पहला मौका नहीं है जब उड़ीसा में महात्मा बुद्ध के जन्म होने का दावा किया गया है। राज्य के जाने-माने इतिहासकार चक्रधर मोहपात्रा ने 1963 में इसी तरह का दावा किया था। दास के मुताबिक मोहपात्रा ने इस विषय पर शोध पत्र भी तैयार किया था और उन्होंने अपने दावे के पक्ष में एक किताब भी लिखी थी । इतिहासकार प्रो. सगिदानंद मिश्रा का कहना है कि तराई क्षेत्र में मिले एक शिलालेख के आधार पर ही नेपाल को बुद्ध का जन्म स्थान घोषित कर दिया गया।"
हमने इस समाचार के विपक्ष में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की। 09.08.02 के जनसत्ता (दिल्ली) में प्रकाशित टिप्पणी के अनुसार
विश्व के बौद्ध धर्मावलंबियों की आस्था का केन्द्र गौतम बुद्ध की जन्मस्थली नेपाल स्थित लुम्बिनी न होकर ओड़ीसा में बताया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
यह बात दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ डॉ. कृष्णानंद त्रिपाठी ने कही। त्रिपाठी ने बताया कि शोधकर्ताओं का यह दावा पूरी तरह से तथ्य विहीन, भ्रामक एवं बेबुनियाद है। उन्होंने इस प्रचार को भगवान बुद्ध में आस्था रखने वाले पर्यटकों को गुमराह करने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि इस विवाद ने सम्राट अशोक के स्तंभ सहित अन्य सभी प्रमाणों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है।
भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है कि यहाँ के महापुरुष स्वयं का इतिहास बनाने, अपने जीवनकाल में स्मारकों के निर्माण आदि में रूचि नहीं रखते थे। वे व्यक्ति एवं समाज की रचना में विश्वास रखते थे। यही कारण है कि आज भारतीय महापुरुषों के सन्दर्भ में विवाद उत्पन्न हो रहे हैं।
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अर्हत् वचन, 14 (23), 2002
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