Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
10
अनुसंधान- २७
उपसृत्य सूरसेनी - सामिआ, इमाए सहीए सद्धि विक्कमनयरं पासिदूणाहं हरिसुक्करिसमुवगदा । इत्थ णं आणंदरामनामेणं रण्णो पहाणपुरिसो दट्ठो । अम्महे भयवं दाव तस्स लावण्णं किं भणेमि ? देव : - कीदृशोऽसौ ? । शूरसेनी
घडिदूण अज्जउत्तं एदं पुण अज्ज बंभदेवोवि । एदारिसं घडेदुं होत्था नोय्येव य समत्थे ||२०|| होज्जा कस्सवि जणओ जदि बंभो पुण सरस्सदी जणणी । तहवि हु न भोदि लोए वियक्खणो अस्स सारित्थो ॥२१॥
अथ मागधी: - हते ! उवलम | हगेय्येव एदश्शलूवं पलूवयिश्शं । शूरसेनी उपरमति ।
देव: - ब्रूहि मागधि ! तच्चरितम् ।
मागधी : - खलु शिलि शुयाणशिघश्श शामदाणेहिं भेयडंडेहिं । पञ्चे शच्चपदिञ्चे लज्जधुलं शुणिव्वहदे ॥ २२॥
तम्मि पुले शे लाया पुणो वि शे धम्मिए णिवकुमाले । शे तत्थ पहाणपुलिशे युत्तमिणं णिम्मिदं विहिणा ||२३||
अथ पिशाची : - हले ! उवलम, त ( तं) एतस्स फुत्थत्तनं न किय्यत्तो अहं य्येव चानामि ।
देव: - वद त्वमेव ।
पिशाची: - छहतलसनपलमत्थं यो वितति सत्थय निफल निऊन । अत्थप्पेलक्कलुई सच्चेमक्के पतंतेइ ||२४|| सच्चनलक्खनतक्खो समक्कफासालतो मतिमं ।
पहुलोकानंतकलो नत तुआ नंतलामोसो ||२५|
विदूषकः - ही ही ! इमाए मागहीपिशाईभगवदीए गिलविलरूवं वाणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114