Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ March-2004 21 "ये मज्जन्ति न मज्जयन्ति च परास्ते प्रस्तरा दुस्तरा वार्डों वीर ! तरन्ति वानरभटानु(उ)त्तारयन्ति(न्ते) परान् । नावा ग्रामगुणा न वारिधिगुणा नो वानराणां गुणाः स्फूर्जद्दाशरथेः प्रभावमहिमा सोऽयं समुज्जृम्भते ॥" शास्त्रमाहि एकांतपक्षि अनि प्रत्यक्षानुमानि करी पाषाण बूडई अनइ अनेरारइं बोलई । पाषाण, ए गुण । एस्या महामोटा पाषाण श्रीरामदेवतणे वानरे समुद्रमाहि मूंक्या हूंता तरइं । सेतुबंध प्रत्यक्ष आज लगी दीसई सांभलीइं । तेउ ते पाषाणतणउ को गुण न जाणिवउ, समुद्रतणउ को गुण न जाणिवउ, अथवा वानरतणउ को गुण न जाणिवउ । ते गुण श्रीरामदेवतणुं भाग्यनु जाणिवउं । तिम हुं पाषाणसिरीखु महामूर्ख जड हूंतउ एह श्रीकल्पसूत्रतणी वाचना करउं, ते माहरु को गुण न जाणिवउ, सभा शालातणउ को गुण न जाणिवउ। ते गुण सद्गुरु अनइ श्रीसंघतणउ जाणिवउ । तउ ते सद्गुरु अनइ श्रीसंघतणइ प्रसादि एह श्रीकल्पसूत्रतणी वाचना करउं । अनइ इणइं स्थानकि ईणइं क्षेत्रि अनेकि गणधर, संपूर्ण श्रुतधर महाव्याख्यानी नवरसावतार व्याख्याण करणहार, तेहइ वखाण करई, श्रीकल्पसूत्रतणी वाचना करई । अनइ हूंइ ते श्रीकल्पसूत्रतणी वाचना करउं । ___ "टोलो रुलो रुलंतो अहीयं विन्नाणनाणपरिहीणो । दिव्वव्व वंदणिज्जो कीउ(ओ) गुरुसुत्तहारेण ॥" जिम टोल पाषाण रुलतउ हूंतउ, ज्ञानविवर्जित हूंतउ आणिउ । तेहतणी प्रतिमा कीधी । गुरु तणे वचने श्रीसंघ विधिमार्गि प्रतिष्ठित कीधी हूंती देवतणी प्रतिमा हुई । सविहुं रहइं माननीय । तिम हूं संघतणइं प्रसादि माननीय हुइसु । जिमतिम गुरुआतणे स्थानकि कांई एक वचनमात्र बोलिउं ते श्रृंगारभूत प्रवर्तइ । - "सर्वत्र महतां नामोच्चाराद् भवति गौरवम् । लभते भव्यभोज्यानि शुको राम इति ब्रुवन् ॥" सर्वत्र-सघलइ गुरुआतणा नामोच्चार मांगलिक्य तणइ अर्थि संपजइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114