Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 92
________________ March-2004 85 शतकथी पूर्वेनी नथी, ए मुद्दो सूचक छे. देश्य भाषाओनो प्रभाव वधवा मांड्यो हतो अने प्रजाजनोमां संस्कृत व्याकरण आधारित शिक्षणनी परिपाटी क्षीण थवा लागी हती ते समयनी ए रचनाओ होई शके. सामान्य विद्यार्थीओने पण ते समयनी शाळाओमां नमः सिद्धं', 'सिद्धो वर्णसमाम्नायः' जेवां सूत्रो मंगलाचरण रूपे गोखाववामां आवतां. (एना अवशेषरूपे हजी दोढ सो-बसो वर्ष पहेलांनी 'धूळी' निशाळोमां 'सीधा वरणा समामनाया' जेवां भ्रष्ट सूत्रो विद्यार्थीओने गोखवां पडतां हतां.) 'बाराखडी' अने 'कक्को' ए देशी-गामठी शिक्षणना विकासना गाळामां योजायेली संज्ञाओ छे. संस्कृतना प्रभुत्ववाळा समयमां क्ष-ज्ञ जेवा संयुक्ताक्षरोने वर्णमालामां स्थान न होय ए देखीतुं छे. प्रस्तुत 'सिद्ध-मातृका'मां 'ळ' अने 'क्ष'नो समावेश छे अने 'ज्ञ'नो नथी ते ध्यानमा लेवावं जोइए. ए ज रीते आमां ५६ मातृकानी गणना छे, तेने अन्य कोई स्थानेथी समर्थन मळे छे के केम ते पण तपासवू जोइए. 'भली', 'भले मींडु' जेवा प्रतीकोना अर्थ विशे प्रायः पू. आगमप्रभाकरजीना लेखनकलाविषयक ग्रन्थमां विवरण छे. एक स्थळे पाठ त्रुटित छे तेने बाद करतां कृति शुद्ध छे. श्लो. ८८मां 'अत्यक्ष' शब्दने स्थाने संपादकोने 'अप्रत्यक्ष' शब्द शा माटे आवश्यक लाग्यो छे ते समजायुं नथी. 'प्रत्यक्षात्यक्षपदा-र्थबोधनिपुणे प्रमाणे द्वे' एवो प्रतिमां मलतो पाठ ठीक लागे छे. अत्यक्ष = अतीन्द्रिय. 'अप्रत्यक्ष' शब्द लेतां ऊलटानो छन्दोभंग थशे. जो के कर्ता समर्थ कवि होवा छतां बे-त्रण स्थाने कर्ताए छन्दोभंग थवा दीधो छे. श्लो. ३६ अने ४८मां आम थयुं छे. श्लो. १००मां 'श्रीमरुदेवया' शब्द ध्यानाह छे. 'मरुदेवा' शब्द मारुगूर्जर भाषानो प्रभाव सूचवी जाय छे. आ एक ज प्रयोगथी श्री सिद्धसेन दिवाकरनी रचना न होवानुं स्थापित थई जाय छे. एटलुं ज नहि, कृतिनो समय १३मा शतकथी पण घणो परवर्ती होवानी संभावना खडी थाय छे. आना कर्ता 'प्रवचन सारोद्धार' टीकाना रचयिता सिद्धसेन सूरि पण न होय अने कदाच आ पण सिद्धसेन दिवाकरना नामे पंदरमी-सोळमी सदीना कोई समर्थ यतिए रचेली कृति होय एम बने. श्लो. ५३मां :-त्रिगुणतीत०' छे. '०णातीत०' लइए तो अहीं पण छन्दोभंग थाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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