Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 91
________________ 84 अनुसंधान-२७ विहंगावलोकन (अनुसं. २५नु) मुनि भुवनचन्द्र 'अनुसन्धान' अनियतकालिक. रूपे पचीसमा अंकना 'माइलस्टोन' सुधी पहोंचे छे ए वात शोधसंशोधनप्रिय विद्वद्वर्ग माटे मोटा हरखनो विषय छे. आ प्रकार- विद्वद्भोग्य सामयिक शरु करवू, तेने पुष्ट करवू-राखq ए एक आह्वानरूप कार्य गणाय. जैनोमां-खास करीने श्रमण-श्रमणी वर्गमां-आ प्रकारना कार्यने 'बिनउत्पादक' (unproductive) जेतुं स्थान आजे मळ्युं छे, तेवे समये आवें संशोधनपत्र प्रति अंके वधु ने वधु सुन्दर आकारप्रकार धारण करतुं भरयुवानीमां पहोंचे छे. सद्गत भायाणी साहेबनी हूंफ, श्री शीलचन्द्रसूरिनी हाम अने 'कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि ना 'दाम'ना सुभग संयोजनथी आ शक्य बन्युं छे. जैन विद्याना रसिको माटे 'दूधे वूठ्या मेह' जेवू ज आ प्रकाशन छे. भायाणी साहेबनी गेरहाजरी, सतत विहार, अन्यान्य धार्मिक प्रसंगोमां व्यस्तता, नबळी तबियत छतां 'अनुसन्धान'नुं अनुसन्धान आचार्यश्रीए सुपेरे जाळवी राख्युं छे. अन्य प्राचीन ग्रन्थोनां सम्पादन-प्रकाशननुं कार्य पण समांतरे चालतुं ज होय छे. 'नन्दनवनकल्पतरु' जेवू संस्कृत पत्र पण आचार्यश्रीना निर्देशन नीचे प्रकाशित थाय छे. आ कार्यमा आचार्यश्रीने तेमनी विद्वान शिष्यमंडळीनो समर्पित सहयोग सांपडे छे ए तथ्य अहीं नोंधq जोइए. आपणे इच्छीए के आ. शीलचन्द्रसूरिना निर्देशन हेठळ प्राचीन जैन साहित्य जैन ज्ञानभंडारोमाथी उलेचाइने आ रीते विपुल प्रमाणमां प्रकाशमां आवतुं रहे. २५मा अंकनी प्रथम कृति “सिद्धमातृकास्तव' वैदुष्यना तेजःस्फुलिंगो वेरती प्रगल्भ अने काव्यकलारसिक जनो माटे मिष्टान्नभोजन जेवी तृप्ति आपनारी कृति छे. श्रीधुरन्धरविजयजी तथा श्रीशीलचन्द्रसूरि-एम बे सम्पादको द्वारा कृति तथा तेना विषय अने कर्ताने स्पर्शती तथ्यात्मक चर्चानो लाभ आ कृतिने मळ्यो छे. कृतिना कर्ता विशे थयेली ऊहापोह आ कृति उपरांत अन्य बे कृतिओना कर्ता अंगे निर्णयात्मक स्थिति पर पहोंचाडे ऐवी आशा जन्मावे छे. मातृका अर्थात् वर्णमालाने अनुलक्षीने रचायेली कोई पण रचना तेरमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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