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March-2004
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(पूरवणी) आश्वस्त करे तेवो वास्तविक वृत्तान्त
भाण्डारकर इन्स्टिट्यूट, पूनामां थयेल सांस्कृतिक नुकसाननी विगतो मेळववा माटे करवामां आवेला पत्रव्यवहारमां जाणवा मळे छे के त्यांना हस्तप्रतिसङ्ग्रहने विशेष नुकसान नथी पहोंच्यु, अने ते सलामत रीते बची गयो छे.
कोश-कार्यालयनां डॉ. नलिनीबेन जोशी पोताना ता. २३-२२००४ना पत्रमा लखे छे के- "हानि तो सचमुच बहुत हुयी लेकिन वह सब काँच, कपाट, फैन, खिडकियां, टेबलकुर्सियां, कोम्प्युटर आदि भौतिक वस्तुओंकी ही ज्यादातर हुई । गणेश प्रतिमा, आल्बम गायब हुए और विद्वानों के तैलचित्र भी प्रायः नष्ट ही हो गये । सभी १ लाख किताबें और लगभग १०,००० पाण्डुलिपियाँ अलमारियों से नीचे गिरकर दबी अवस्थामें पडी हुई थी ।
शुक्र है कि सभी पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित है । किसी की भी चोरी नहीं हुई । एक भी किताब और पाण्डुलिपि जलायी नहीं है । मतलब है कि हमारी धरोहर प्रायः सुरक्षित है । बाकी कम्प्यूटर व. सभी मौल्यवान् वस्तुओंकी पूरी तोड-फोड हुयी है ।
पूना की लगभग ५० जैन महिलाओंने लगातार चार दिन काम करके १०-१५ हजार किताब ठीक-ठीक किये । प्राकृत-डिक्शनरी विभाग तो दो दिनमें व्यवस्थित किया । पूना के लगभग २०० विद्यार्थीयोंने मेन लायब्रेरी के लिए सहयोग किया । आर्थिक सहायता भी आम आदमी से लेकर उद्योगपति तक सभी कर रहे हैं।
आप अंत:करण में बहुत व्यथित न होवे क्योंकि जो हानि हुई है वह पूरी करने लायक है और करेंगे ।"
आ वृत्तान्त खूब आश्वस्त करनारो छे. अलबत्त, पोथीओ नीचे नाखवी अने ते पर कपाटो नाखवा; कपाटो तळे पोथीओ दबाई जाय, तो
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