Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 89
________________ अनुसंधान-२७ छे, प्रतमां लहियाना हाथे छूटी गयो होय तो सम्पादिकाए चोरस कौंसमां ए दर्शाववो जोइतो हतो, अथवा बीजी प्रतमां जोइने पाठ पूरो करी लेवो जो तो हतो. कडी १० मां 'खाइ नर....' नहीं, पण 'खाइ न....' होइ शके. 'र' लिपिकारना हाथे प्रवेशी गयो छे, अर्थ पण 'नकार' थी ज बेसे- 'सनेपातियो साकर खाय नहीं.' कडी ११ - 'नदी सूकीनिइ' छे त्यां 'मूकीनिइ' वधु संगत छे. एज कडीमां 'घरडसू' शब्द पण शंकास्पद छे. 'स्व' 'सू' तरीके वंचायो होय एवी भीति छे. 'घरड स्वअंग'. अहीं 'घरड' ए 'खरड' होय ए शक्यता पण खरी. ( कडी १४ - ) 'निलु' छे त्यां 'नितु' होवानो संभव छे. ए ज कडीमां 'तउ हइ' छूटां नहि पण 'तउहइ' एम भेगां लखाय ते वधु योग्य लागे छे. (कडी २२- ) 'विसणइ' नहि, 'विणसई' होवुं घटे. लहियाना हाथे थयेली क्षतिओ सुधारीने मूळ पाठ सुधी पहोंचवाना प्रयास संपादके करवा ज जोइए. 82 आ रचनाना अन्ते सं. १६८२मां गुजरातमां थयेल भूकंपनो दस्तावेजी उल्लेख मळे छे, ते कोइके भूस्तरशास्त्रीओने पहोंचाडवा जेवो छे. 'षट्प्राभृत' मां दन्त्य नकारनो प्रयोग ज्यां जळवाइ रह्यो छे एवां स्थानोनुं एक सर्वेक्षण डॉ. शोभना शाह द्वारा मळे छे. आ माहिती प्राकृतभाषाना अभ्यासीओने रसप्रद बनशे. जैन आगमो शौरसेनी भाषामां हता एवं मानवा - मनाववानो प्रयत्न दिगम्बर संप्रदायना अमुक वर्ग तरफथी थाय छे. परंतु, जे ग्रन्थो शौरसेनी भाषाना ज गणाय छे तेमां पण प्राचीन अर्धमागधीनी छाया जोवा मळती होय तो तेमणे फेरविचार करवो घटे प्रो. के. आर. चन्द्राए अर्धमागधीना स्वरूपनिर्धारण माटे पायानुं काम कर्तुं छे, प्रस्तुत लेखमां ए कार्यनुं अनुसन्धान थइ रहेलुं जोइ आनंद थाय छे. आ ज लेखमां षट्प्राभृतमां विभक्ति - प्रत्ययनो लोप थयो होय एवा शब्दप्रयोगोनी सूचि पण सामेल छे. आथी तो आ प्राभृतो अपभ्रंश भाषानो विकास थई रह्यो हतो ते गाळामां रचाया होवानुं तारण मळे छे. आ प्रकारना तुलनात्मक संशोधनात्मक अभ्यासो कृतिरचनानो समय निश्चित करवामां केन्द्रीय भाग भजवे छे. श्रीमती रसिला कडिया पासेथी त्रण गुजराती लघुकृतिओ सम्पादित थइने मळे छे, जेमांथी बे कृतिओ ऐतिहासिक विषयनी छे; कृष्ण-बलभद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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