Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ अनुसंधान-२७ पृ. १३ मुगामाण २१ रासनी वाचना विशे कंइकगा. मुद्रित सूचित पाठ १६ मशचइ(?) 'मचावई' होइ शके. मुगामणि 'मुगटमणि' (झेरोक्स नकलमां ट चोखो न ऊठ्यो होय एम बने) १६ पावि 'पाचि' (रत्ननुं नाम छे) २० हीरि उमरयना(?) । 'हीरि तु मरय ना' (क्यारेक 'तु' उ जेवो वंचातो होय छे.) 'हम ही थइ' 'हम हीथइ' (शाह अकबर कहे छे के अमे तो अहींज, तमारा तो चार खंडमां स्थान.) ढाल अयारांदपुबे अय यारा.... जेवं कंइक. (गीतनी देशीना माळखामां वपरातो शब्दगुच्छ छे. दरेक कडीना प्रारंभे समजवानो छे.) ४ . बनि 'बरनि' १४ सुन्यान सुन्या न शिर पणि(एणि?) 'पाणि' (गुरुजी, मारा सिर पर हाथ मूको) ४ संचऊर संच ऊर (संचयंत्र) ढाल मुवी (पुहवी ?) भूवी भारइं (?) 'भारइंहिं डोलए' एम होय. (मोटो संघ चालवाथी शेषनाग भारना कारणे डोले छे.) ३५ शंकरी 'शंकरा' वांचवें जोइए २ क्रपाली 'क्रपाला' (रा अने री तथा ला अने ली वांचवामां भूल थई शके.) २४ २५ ३२ - ३३ ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114