Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 86
________________ March-2004 79 विहंगावलोकन (अनुसंधान-२४y) मुनि भुवनचन्द्र ।। अनुसंधान-२४नी सामग्रीनो प्रारंभ 'ते धन्ना०' स्तोत्रथी थाय छे. प्रभु आदिनाथना जीवनप्रसंगोने मनश्चक्षु समक्ष चित्रित करी हृदयने प्रभुप्रेमथी परिप्लावित करी जती आ रचनानी अंतिम बे गाथाओमां गरबड छे. अन्य प्रतोमां कदाच पूर्ण गाथाओ मळी आवे. दरम्यान, कवि-मनीषी मुनि श्री धुरन्धरविजयजीए आ बे गाथाओनी पुनः रचना करी छे (अनु. २५)ते पण सरस-सुसंगत छे. ___ 'अठोतरसो नामे पार्श्वनाथ स्तोत्र'मां १०८ तीर्थनामो पूरां छे. एक नाम खूटतुं होवा- सम्पादकने लाग्युं ते सरतचूक हती. आ तीर्थोना विषयमां शोधकार्य करवा जेवू छे. 'कुकडेसर' विशे म. विनयसागरजीए दर्शाव्युं छे तेम ते मध्यप्रदेशमां होई शके. एमणे स्तोत्रना कर्ता विशेनी पूरक माहिती पण आपी छे (अनु. २५) कच्छ-भद्रेश्वरमां मूळ तीर्थनायक पार्श्वनाथ भगवान होवा छतां १०८ पार्श्वनाथ तीर्थोमां तेनो समावेश थयेलो जोवा मळतो नथी. मूळनायक तरीके महावीरस्वामीनी प्रतिष्ठा थया बाद तीर्थमालाओ रचाई होवाथी कदाच एम बन्युं होय. स्तोत्रनी पहेली कडीमां 'सु-'मां खूटतो अक्षर 'ख' होइ शके- 'आपइ सुख'. आ अंकनी शिरोमणि रचना छे- विजयवल्ली रास. ऐतिहासिक दृष्टिए महत्त्वपूर्ण, भावसभर अने भाषाकीय दृष्टिए रसप्रद एवो आ रास अद्यावधि अप्रगट रह्यो ए जरा खटके एबुं छे. कविए तत्कालीन वातावरण खडुं करवा माटे ते समये राजकीय क्षेत्रे आकार लइ रहेली उर्दू भाषानो आमां छूटथी उपयोग को छे. आ भाषामां हिन्दुस्थानी-अरेबिक-फारसी जेवी भाषाओगें मिश्रण छे. श्री जयंत कोठारीए संपादित करेल 'स्थूलिभद्र चंद्रायणि' ('फार्बस' त्रैल, पु. ६५, अंक-१०२)मां आ भाषा छे. फारसी वगेरे भाषाओना शब्दकोशोनो आश्रय लीधा वगर आ रास स्पष्ट थई शके नहि. संपादक शीलचन्द्रसूरिए रासनो सारांश तो आप्यो ज छे अने महत्त्वनी वातो तरफ ध्यान खेंच्युं छे. व्यकट, ध्यन जेवा उच्चारो खंभात प्रान्तनी बोलीनां लक्षण छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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