Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 84
________________ March-2004 77 जनोने पण खुश कर्या, अने मगधदेशनुं पालन ते करवा लाग्यो. एकवार, चन्द्रमती रथ पर आरूढ थई, ते साथेज रथना दशेदश आरा धरती पर पडी गया. आ जोईने चाणक्ये भाख्युं के मयूर(मौर्य) वंशनी दश पेढी राज्य भोगवशे. बीजा एक प्रसंग राजा तेना क्रम मुजब विषमिश्रित भोजन जमतो हतो, त्यारे राणीने होंश थई आवतां तेणे पण ते भाणामांथी कोळियो लई लीधो. ते गर्भवती हती. अने ते समये चाणाक्य त्यां हाजर हतो. तेणे तत्काल तलवारथी राणी- मस्तक कापी नाख्यु, अने अंदरना गर्भने पेट चीरीने बहार काढी लीधो. तो पण बिन्दु जेटलो विषनो अंश तेना शरीर पर झरेलो जोई तेनुं नाम बिन्दुसागर पाड्यु. परंतु राणीना आवा मृत्युने राजा सहन न करी शक्यो, अने तेणे तत्काल प्राणत्याग कर्यो. पछी चाणाक्ये बिन्दुसागरनो राज्याभिषेक कर्यो. ते युवान थयो एटले चाणाक्ये वैराग्यप्रेरित साधुजीवन स्वीकारवार्नु विचार्यु. सुबन्धुने केदमांथी बहार काढी, मानसहित मंत्रीपदे स्थाप्यो अने खमाव्यो. पछी पोते मतिवर नामे जैनाचार्य पासे दीक्षा लीधी. आगमो भणी अने तपस्या आचरीने तेओ आचार्य बन्या, अने सपरिवार सर्वत्र विचरता. एकवार पाटलीपुत्रनी नजीक वहेती शोण नदीना कांठे गोष्ठमां रोकाया. सुबन्धु तेमने मळवा तो आव्यो, पण पूर्वनो वेरभाव ताजो थवाथी तेणे पोताना माणसो द्वारा ठंडीथी रक्षणना नामे, मुनिगण हता, ते गोष्ठनी फरतां छाणांना ढगला गोठवाव्या, अने पछी तेमां आग चंपावी. ते आगे गोष्ठ अने तेमांना चाणाक्य आदि मुनिओने भरखी लीधा. मुनिओ पण शुभध्यानआराधनापूर्वक समाधि-मृत्यु पामी शुभ गतिए गया. चाणाक्य मुनि सनत्कुमार देवलोके गया. कथानक बहु रसप्रद छे. घणी वातो कांईक जुदी होय तेवू लागे. तेमां पण १. चन्द्रगुप्तनुं नाम चन्द्रभुक्त; २. चाणाक्य १२ वर्षनी प्रतिज्ञा ले छे, पण ते पूरी करवामां लागतां घणां वधु वर्ष, अने छतां १२ वर्षे ज पूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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