Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ March-2004 73 'चाणाक्य 'नुं एक दक्षिणी कथानक ईसुनी दशमी शताब्दीमां थई गयेला मनाता दिगम्बर जैन साधु श्री शिवकोटि-आचार्ये कनड भाषामां रचेल कथाग्रन्थ 'वड्डाराधना' (वृद्धाराधना)नी १९ कथाओ पैकी १८मी कथा 'चाणाक्य'नी छे. जैन ग्रन्थगत चाणक्यकथामां अने 'मुद्राराक्षस'-वर्णित कथामां तफावत तो छे ज. परन्तु प्रचलित जैन चाणक्यकथा करतां पण वड्डाराधनानी कथा घणी जुदी पडी आवे छे, एटले ते कथा एक नोंधरूपे अत्रे आपवामां आवे छे. वड्डाराधना ग्रन्थना मूळ सम्पादक डि.एल. नरसिंहाचार्य छे, अने तेमणे ई. १९४९मां तेनुं सम्पादन करेल छे. चाणक्यनी कथा मूळ कन्नडमांथी संस्कृतमां, शोधदृष्टिए, विद्वान् एस. जगन्नाथे अवतारी छे, जे केरल राज्यना वेलीयानाड (veliyanad) स्थित चिन्मय इन्टरनेशनल फाउन्डेशननी शोधपत्रिका Indic Studies (Vol. 1, 2002)मां प्रगट थयेल छे. ते परथी अत्रे संक्षेप आपवामां आव्यो छे. एस. जगन्नाथे. केटलाक मुद्दा आ प्रमाणे नोंध्या छे : १. वड्डा० गत चाणाक्यकथा अने मुद्राराक्षसगत चाणक्यकथा-बन्नेमां आभ-जमीन- अन्तर छे. २. अन्य दिगम्बराचार्य हरिषेणकृत बृहत्कथाकोषमांनी चाणक्यकथा करतां पण आ कथा घणी जुदी छे. ३. शिवकोट्याचार्ये कोई ग्राम्य कथानोलोककथानो आधार लीधो होवो जोईए. ४. अहीं चाणक्यने 'चाणाक्य' तरीके ओळखाव्यो छे. कन्नड भाषामा प्रयोजातो 'चाणाक्ष' शब्द ते आ 'चाणाक्य'नो अवशेष होय, तेमज कन्नड आदि भाषाओमां प्रयोजाता 'चालाक' शब्द- अनुसन्धान पण आ 'चाणक्य' साथे होई शके. ५. 'मुद्राराक्षस' चाणक्यना जीवनना उत्तरार्धनुं ज वर्णन आपे छे, पण कोईए तेना जीवननी पूर्व-घटनाओनुं वर्णन निरूपता रूपकनी पण रचना करी होवी जोईए, अने तेना अनुसन्धानमां विशाखदत्ते, पूर्ववृत्तान्तने उवेखीने तथा पछीना वृत्तान्तने 'वस्तु' बनावीने 'मुद्राराक्षस' रच्यु होय, तेवी सम्भावना छे. ६. चाणाक्यनी (इतर साहित्यमां) प्रचलित कथानी तुलना के तुलनात्मक अभ्यास मुद्राराक्षसपरम्परानी कथा साथे हजी सुधी प्रायः थयो नथी, तेम मानीने तेवा अभ्यासनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114