Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
March-2004
65
इहां राइणि रुख रूडउं निहालु, तिहां आपणां पापी(प)ना ताप टालुं समोसरण हूआं जिहां जिण अणंत, धन ते प्रभु वंदिअ विजयवंत. १२ सुणिसु रूअडा रूअडा रयण सार, तारी अंखडी दिइ मझ अकवार. जिम वंदिइ वली वली मनह रंगि प्रभु आपणु सेर्बुज सिहरि श्रृंगि. १३ मोरु मन रहिउ ताहीरइ चलणि लागी, तव तुम्ह कन्हइ आज नइ सुगति
__म(मु)गति मागी. एह तीरथ सासतुं सिद्धक्षेत्र, युगादीस जाणे जिहां जगहनेत्र. १४ वसइ विमलगिरि उपरि पंखजाति, धन प्रभु पय नितु नमंइ सुप्रभाति छहरी पालतां जे जण करई जात्र, तेह नितु नितु निरमल हुंइ गात्र. १५ अरे विषय वयरी तुझ न हीअ लाग, तुज परि उपनु मुज विराग अरे मोह मतंग तु हारी नासि, हवइ आपणुं ठाम ते करीसुं विमासी. १६ जगि जेहनी कहनइ नही पाडि, तेहू भुजबलि भागीअ कर्म धाडि मिलिवउ ठाकुर आपणु तु आज हेव, सोई समरथ सेत्रुज धणीअ देव. १७ अह दरसणि दुर्गति दोइ नासिइं, एह दरसण छूटि गर्भवासइ अछइ एतलुं एह संसार सर करइं, त्रिभुवन तीरथ जे जे हार. १८ जिम मनस सरोवरे रायहंस, तिम तुज गुणि मोरडउ रमइ हंस जिम मधुर करमालती रमइ रंगि, मन माहरु सेत्रुज सिहरि श्रृंगि १९. जिम जलधर पेखि, नाचंति मोरा, हीइ हरखीइ जीम चादाचकोरा. तिम सेत्रुज सिहरि हुं रंगि लीण उ करुं वनती केतली बुद्धिही'. २०. धन घडीअ वेला, दिन, वरिस, करइ सेत्रुज नर जे सिहरि वास घणी वनंती एह ज वात सारी ली, भवि भवि भेटि देज्यो तुम्हारी. २१ सिरि लच्छिसायर जगदिवायर सीस जिनमाणिक गुरो. तस सीसलेसइ अनंतहंसइ थुणिओ सेव्रुज गिरिवरो. २२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114