Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ March-2004 67 'प्रमाणसार' विषे अनुसन्धान-२५ (सप्टे.२००३)मां प्रकाशित, मुनीश्वरसूरिरचित 'प्रमाणसार' नामे लघुग्रन्थ परत्वे स्पष्टता करवानी के ए ग्रन्थ १९७३मां L.D.Series (no. 41)अमदावादमां डो. नगीन जे. शाह द्वारा सम्पादित 'जैन दार्शनिक प्रकरण सङ्ग्रह' नामे ग्रन्थमा सम्पादन-प्रकाशन पामेलो छे, ए बाबत हजी हमणां ज, फेब्रुआरीमा ज ध्यान पर आवेल छे. जो के सम्पादन माटे उपयोगमा लेवायेली हस्तप्रति, अमारा द्वारा उपयुक्त प्रतिओ करतां साव भिन्न छे, अने तेने कारणे वाचनामां पण क्यांक थोडोक तफावत जोवा मळे छे. 'अनुसन्धान' माटे आ ग्रन्थ, सम्पादन हाथ धरतां अगाउ, आनी वधु प्रतिओ मेळववाना तथा वधु जाणकारी मेळववाना हेतुथी L.D.I.I. पर बेएक पत्र पाठवेला. परंतु कोई पण कारणसर तेना जवाब मने मळेल नथी. हमणां में आ बन्ने सम्पादनो मेळव्यां छे, बन्नेनी तुलना करतां 'अनुसन्धान'नी वाचनामां जे पाठ खूटे छे के जे पाठमा क्षति रही छे के ज्यां पाठभेद जणाया छे, तेनी नोंध नगीनभाई-सम्पादित वाचनामांथी लईने अत्रे आपवामां आवे छे. बन्ने वाचनाओमां तथा सम्पादनमा कांईक ने कांईक क्षति तो नीकळवानी ज. अहीं आपेल आ नोंधथी एक वाचना वधु शुद्ध अन वधु पूर्ण थशे तेनो आनन्द छे. अनु. २५नुं सम्पादन भावनगरनी तथा लींबडीनी मळीने कुल बे प्रतिओना आधारे थयुं छे, ज्यारे नगीन शाहना सम्पादननो आधार L.D. ना. श्रीपुण्यविजयजी-सङ्ग्रहगत प्रति रही छे. ग्रन्थनी प्रस्तावनामां श्रीनगीनभाईए नोंध करी छे ते प्रमाणे, 'प्रमाणसार'ना रचयिता श्रीमुनीश्वरसूरि वृद्धगच्छना आचार्य हता, तथा तेमनो सत्तासमय विक्रमना १५मा शतकनो उत्तरार्ध हतो. तेमनी गुरुपरम्परामां श्रीदेवाचार्य, जिनरत्नसूरि, तिलकसूरि, भद्रेश्वरसूरि वगेरे हता. नगीनभाईना सम्पादननी विशेषता ए छे के तेमणे ग्रन्थमा आवतां उद्धरणोनां शक्य एटलां मूळ स्थानो शोधीने नोंध्यां छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114