Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 31
________________ 24 अनुसंधान-२७ कीधा । तीहतणी मोल्हावसही श्रीशत्रुजय ऊपरि प्रसिद्ध । पिप्फलगच्छि श्रीधर्मदेवसूरि हुआ, जेहे राजा सारंगदेवना ३ भव कह्या, त्रिभवीया बिरद हूउं । अनइ कांचनबलाणाहूंती स्तुति आणी ॥ ईणी परि गच्छि गच्छि अनेक प्रभावक हूआ ॥ चित्रावालगछि श्रीधनेश्वरसूरि हुआ, जेहे चैत्रइ महानगरि १८००० सहस्र ब्राह्मण प्रतिबोधी श्रीमहावीरनुं प्रासाद कराविउ । अढार धडनी सुवर्णमय श्रीमहावीरनी प्रतिमा करावी, स्थापी । १८ पदस्थापना कीधां । शत्रुजयमहात्म्य कर्ता ॥ पूर्णतिलइगच्छि श्रीदत्तसूरिनइ संतानि श्रीहेमसूरि कलिकालसर्वज्ञावतार श्रीहेमसूरि हूआ । जेहे जीणइं राजा श्रीकुमारपाल प्रतिबोधी चऊदसई ४४ प्रासाद कराव्या । अमारि वर्तावी । ३ कोडि ग्रंथ नवा कीधा । इम अनेकि प्रभावक गच्छिगच्छि हुआ ॥ आत्मीय श्री वडगच्छतणी वर्णना कीजइ । श्रीवृद्धगच्छो महिमानिधानः, सिद्धान्तसारस्य वर प्रधानः । श्रीमानतुङ्गस्य वरं प्रदत्ते, तस्मि(स्या?)न्वये राजति राजगच्छः ॥ ईणइ वडगच्छि श्रीमानतुंगसूरि, जीणइं भक्तामर काव्य कीधउं । जिनशासन गहगहाविउं । तत्पट्टे श्रीहरिभद्रसूरि, जीणइं बौध जीता ॥ तत्पट्टे श्रीसर्वदेवसूरयः ॥ तेहनइ पाटि श्रीदेवसूरि, जीणई कम (कुमुद)चंद्र क्षपनक जीतु, ८४ वाद जीता ॥ तत्पट्टे श्रीअजितदेवसूरि ॥ तत्पट्टे श्री जयसिंहसूरि ॥ तत्पट्टे श्रीनेमिचंद्रसूरि ॥ तत्प० श्रीमुनिचंद्रसूरि ॥ त० श्रीरत्नसिंहसूरि, जीणइं अढारसु देस प्रतिबोधी १३३ प्रसाद कराव्या ॥ त० श्रीविनयचंद्रसूरि, जीणइं राजा श्रीवीसलदेव प्रतिबोधी षट्दर्शनस्यूं वाद देई 'सिद्धांती' बिरद लाडूं ।। त० श्री शुभचंद्रसूरि । श्रीनाणचंद्रसूरि । श्रीअजितचंद्रसूरि । श्री सोमचंद्रसूरि ।। तत्पट्टे श्रीदेवसुंदरसूरि जयवंता वर्तु । तेहतणो शिष्य हूं जाणिवु ॥ ___एतलइ वडातणा नामोचार हुआ । हवइ अमुकज्ञातीय अमुकातणी अभ्यर्थनाई करी कल्पवाचना कीजइ । अनेरु जि को ग्रंथ प्रारंभई तिहा समुचित द्रष्ट समुचितेष्ट त्रिधा देवतारहई नमस्कार करइ । ईहां मोक्षशास्त्र भणी समुचितेष्ट पंचपरमेष्टि नमस्कार संक्षेपतु वखाणी छइ ॥ "नमो अरिहंताणं ॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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