Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
38
गुरुचरण नमीनइ लेई गुरुकी आसीस नवकार जपइ मुख स्मरणि जिन चउवीस | होवइ शुकन भले तिहां मयगल मलपत दीठ बोलइ वायस वांमो कुकर हरइ अनीठ ॥५०॥ दाहिण अंगइ आवइ नारि सुहासणि जेह विवहारी वारु दक्षण अंग वली तेह | चास तोरण रूपारेलि वारु दाहिण अंगि बोलइ वामांगिइं खर तीतर मनरंगिइं ॥५१॥ दाहिण अंगिई आवइ प्रथम पुहुरि मृग माल मनवंछित पूरइ एही हरणकी फाल । वांमांगिं देव्या बोलति विघन हरेय साचइ सुकुनतणइ बलि चालइ हर्ष धरेय ॥५२॥ दूहा ॥
जगि जस महिमा जागतो, पूरइ वंछित पास । श्रीगुरु भेटइ रंगसुं, श्रीसंखेश्वर पास ||५३|| ढाल || देसी धमालनी ॥
पाटणि वेग पधारीया, श्रीगुरु बहुत मंडाणि रे ।
शुभ करणी सहु को करइ, सुंणीय सहइगुरुकी वाणी रे ॥ तपगच्छपति गुरु गुणनिलो, श्रीविजयसेनसूरिंद रे ।
समतारसमांहिं झीलतु, धरतो मनि आणंद रे ॥ तप० आंकणी ॥५४॥
सिद्धपुर मालवणिमांहि थई, रोह सरोतर चंग रे । सहसाअरजन राजवी, अधिक अधिक करइ रंग रे ॥५५ ॥
मुंडथलाथी कासंदरइ, हवई कीजइ आबू जात रे । मनमोहन गिरि भेटतां, होवइ निर्मल गात रे ॥ ५६ ॥
अनुसंधान - २७
सीरोहीइं सेवा करइ, देवडो राय सुलतान रे । तिणइ समय श्रीसंघ तिहां, करइ अधिक मंडाण रे ॥५७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114