Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 62
________________ March-2004 ततखिण हरिणगमेषी बोलावी, घंट सुघोष वजडावे रे बीस लाख विमानना सुरनें मोहनी निद्रा गमावे रे ॥१७ ज० ॥ कलपोपपन्न विमाननी संख्या, जाणो चुलसी लाख रे सहस छनू ने सातसें उपर, एहवी प्रवचन साख रे ॥१८ ज० ॥ सोहम सुरपति पालक जानें, लाख जोयण जस मान रे मध्य भागें बेठा हरी पोतें, सिंहासने शुभ थान रे || १९ ज० ॥ सन्मुख आठ इंद्राणी बेसें, वामें सामानिक देवा रे सहस चोरासी भद्रासन तेहना, जिमणा परखद देवा रे || २० ज० ॥ हरियाबल सात कटकना स्वामी, तस भद्रासन सात रे चिहुं दिशें चुलसी चुलसी सहसा, अंगरक्षकना अवदात रे || २१ ज० ॥ आयुध लेईनें चिहु दिशि ऊभा, हरि सनमुख कर जोडि रे तीन लाख नें छत्रीस सहसा, आत्मरक्षक मन कोडि रे ॥२२ ज०॥ इम कल्पवासी सहु सुरपतिना सामानिक सुर छेक रे पांच लाख ने षोडश सहसा, अभियोगिक अनेक रे ॥२३ ज० ॥ वीस लाख नें चोसठ सहसा, अंगरक्षकना मान रे अभिनव वाहन अभिनव भूषण, अभिनव रविय विमान रे ॥२४ ज०॥ चौंसठ इद्रना सामानिक सुर अडलख चूलसी हजार रे अंगरक्षक सुर पांत्रीस लाख, छत्रीस सहस उदार रे || २५ ज० ॥ नंदीसरे आवी जान संकोची, आवे मेरु गिरिंदे रे चार निकायकना सुर सुरी मिलीया, मनमां अति आनंद रे || २६ ज० ॥ ढाल ५ (इम जिननी पूजा करी हे साहिब ए देशी) नंदीसरवर दीपथी ते साहिब नंदिसरवर दीपथी, आवें सोहम इंद्र जनमपुरी जिन - जननीने प्रणमें मन आणंद ॥२७ नं० ॥ 55 रतनगर्भा तुझ कूखिमा, ऊपन्ना रतन्न जनम महोच्छव कारणें, आव्यो शुभ मन्न ॥२८ नं० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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