Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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March-2004
हम जानत नीकइ जिस्या तुम्ह आचार" साही सभा सुंणत हई प्रसंसइ वारवार ॥१०१॥
" हम बहुत खुसी हई देखत तुम्ह दीदार सुखिई आए पिंडइ सुखी सहु तुम्ह परिवार ।" तिहां श्रीआचार्य धर्मदेशन दीध भविकजन केरां मनवंछित सहु सिद्ध ॥ १०२॥
अकब्बर आचारिज करइ जे धर्मविचार ते कहुं हुं किणी परिं कइता नावइ पार । कीधी कुंमर निरंद परिं कइ श्रेणिक परि जांणी श्रीहीरजी जेसंगजी कीए विधिना गुणखांणी ॥ १०३ ॥
ढाल ॥ राग सामेरी ॥
मनवंछित काज समारी, हरख्यो हीइ हीरपट्टीधारी । सीख साही पासइं तव मागई, बहु नुबति नींकी बाजइ ॥ १०४॥
उपासरइ श्रीगुरु आवइ, आनंद सहु संघ पावइ ।
दीजइ हीर- चीर पट्टकूल, गंठोडा तुरी बहुमूल ॥ १०५ ॥
रूपानाणइ दुर्जनसाह, प्रभावना मंडिउ प्रवाह ।
धन्य दिवस गणुं ते लेखइ, एहवा आणंद जे नित देखइ ॥ १०६॥
दूहा ॥
इइ अवसर वली जे हुउ, ते सुणो चतुर सुजाण । तारातेज तिहां लगइ, जिहां नवि उगइ भाण ॥ १०७॥
माखी त्यजइ जीउ अप्पणो, पणि देवइ परदुख । दुरजन दहई मनि अपणइ देखि पीआरां सुख ॥ १०८ ॥
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ढाल ॥
बांभणे जाइ चुगली कीधी, मुंकी मयदा मांहिं दीधी । साही जाकुं बहुत तुम्ह मानो, कीछु उहांकी करणी जाणो ॥ १०९ ॥
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