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March-2004
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होई शके अथवा कोई एक कविनी रचनारीतिनो अन्य कवि परनो प्रभाव होई शके.
घणीवार देशीओ पण समयनिर्धारणमां मददरूप बने छे. श्री देवचन्द्रजीनी स्नात्रपूजामांना सर्वे जिणंदाना कळश'मां ८मी ढाळ छे : 'पूरण कळश शुचि उदकनी धारा, जिनवर अंगे नामे'२ आ कृतिमां ढाळ-३ देशी ललनानी कही, आ देशीनां जाणीतां गीत तरीके 'पूरण कळश...... नामे रे' पंक्ति आपी छे जे कवि श्रीदेवचन्द्रजीना कळशना समय बाद आ कळश रचायो होवानुं इंगित आपे छे.
कर्तानाम स्पष्ट नथी. अंते आवती 'ज्ञान महोदय पद लहे' पंक्तिमां कविओ पोतानुं नाम जणाव्यु छे तेम मानी शकाय. जो ज्ञान महोदये आ कळश लख्यो छे तो ते ज्ञान महोदय कया ? शुं ते शान्तिनाथनो कळश'ना रचयिता श्रीज्ञानविमल होई शके ? आ प्रश्न थाय छे.
अन्य कळशोमां छे तेम अहीं पण श्रीजिनेश्वरनो (अहीं संभवनाथनो) जन्म महोत्सव वर्णव्यो छे. माता चौद स्वप्नो जुओ छे, सुपनपाठकने राजा बोलावे छे, फळ सांभळी राजी थाय छे, जन्म बाद छप्पन दिग्कुमारीओ न्हवरावे ने इन्द्रनुं आसन चलित थाय एटले इन्द्र पण भगवानना जन्मना समाचार जाणी, पोताना समग्र परिवार साथे पंचरूपे प्रभुने ग्रही, पांडुकवनमां धामधूमथी जन्महोत्सव उजवे छे अने राजमहेलमां सौने अवस्वापिनी निद्रामां डूबाड्या हता तेने अपहरे छे अने बत्रीस कोडि सुवर्णनी वृष्टि करे छे. अंते कवि जणावे छे के जे आ 'संभवनाथकलश' भणशे तेने रिद्धिवृद्धि थशे तथा नव निधि अने आठ सिद्धिओ प्राप्त थशे.
उपलब्ध स्नात्रपूजामां पांच के सात जिणंदाने कुसुमांजलि अर्पण थती वर्णवी छे ते पैकी अंते आवतो कळश अनुक्रमे श्रीआदिनाथ, श्रीशान्तिनाथ, श्रीपार्श्वनाथ तथा श्रीसर्व जिणंदानो रचायो छे. श्रीनेमिनाथ तथा श्रीमहावीर स्वामिना कळशो उपलब्ध थया नथी. हवे 'श्रीसंभवनाथकलश'नी कृति प्राप्त थता, दरेक जिनेश्वरना अन्य कळशो पण रचाया होवानो संभव लागे छे.
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