Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ March-2004 संसारीआ वंदाववा, श्रीगुरु सादडी आवइ रे । संघ सहू निडोलाईनो, अवसरि लष्यमी वावइ रे || प० ॥ ५८ ॥ राणपुरि जई यात्रा करइ, संघसुं बहुत मंडाणिई रे । लष्यमी कमाई तेहनी, जे अवसरि खरची जाणइ रे || ५९|| तप० । । जन्मभूमि निडुलाई तिहां, गुरु पगले पुण्य जागइ रे संघ सहू गूजरातिनो सीख तिहांथी मागइ रे ॥६०॥ तप०|| बांता बगडीमांहिं थई, जयतारण केकंदिई रे । संघ सहु मेडता तणो, साहमो आवइ आणि (ण) दि रे ||६१ |तप० ॥ राठउड जागती योति तिहां, श्रीगुरु सांहमा आवइ रे । उच्छवरंग जे तिहां हूआ, ते कहइतां पार न आवइ रे ||६२||तप०॥ भमरो दइ भली भगति करइ, सचीआदास सुजाण रे । नरायणा ताई रूपसी, आवइ करत मंडाण रे ॥ ६३ ॥ प० ॥ आणंद होवइ अतिघणा, पहुंता महिमामेर रे । झाकती बहुत मंडाणसुं, आया सांगानेर रे ॥ ६४ ॥ प० ॥ विमल जिणंदकुं भेटवा, गुरु वयराट पधारइ रे । भारमल्ल इंद्राज तिहां, शासनशोभ चढाव रे || ६५ ॥ प० ॥ इंद्राज अति आनंदस्युं, चालइ श्रीगुरुसंगिइं रे । याचकजनांनइ पोषतु, उलट अतिघणो अंगि रे ॥ ६६ ॥ प० ॥ बीरोजथी रयवाडीइं, श्रीगुरु रंगिइं आवइ रे । श्रीसंघ महोत्सव बहु करइ, वित्त सुपात्रइ वावइ रे ॥६७॥ तप०॥ विक्कमपुरि पधारीआ, गुरु इंद्राज वंदावर रे । अवसरि तिणइ अतिघणा, दान याचकजन पावइ रे || ६८ ॥ प० ॥ साहमो संघ झज्झर आवइ, महिमतणो आदि रे । अब जनम सफलो हुउ, फिरी फिरी श्रीगुरु वंदइ रे ॥ ६९ ॥ प० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only 39 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114