Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 41
________________ 34 अनुसंधान-२७ सिंधु देस जे नगरठठो काबिल खुरासान दिल्ली मंडण मेवात देस सघलइ साहि आण । मरहठ मेवाडि मारुआडि मालव गूजराति सोरठ कुंकुण दक्षिण देस सहु अकबर हाथि ॥१७॥ निजबलि अकबरि देस लीआ ताको न लहुं पार कौतग कारणि देस नाम कहीआं दो-च्यार ॥ रथि सुखासण पालखी ए परतखि चक्रवृत्ति पुण्य विवेकी सु सारबुद्धि अडीग्ग आछी मत्ति ॥१८॥ ताजा तुरीय तोखार सार जाकुं न लहुं पार मोटा मयगल मलपता ए दीसइ केई हजार । सेवइ जास सुलतान खांन उंबरा राय रान रोमी फिरंगी हींदु हठी मूलां गाजी पठान ॥१९॥ इस्यो दुनीमई कोउ नाही लोपइ अकबर लीह विधिना एही ज आप घड्यो अडीग्ग अबीह । जाकइ तेजि सहु लोक सुखी प्रजा प्रतिपालइ ___ चाड चबाड अनाई चोर धूत्तारा टालइ ॥२०॥ आनंद अधिक सगाल सदा मोटो वडभागी लाहोरनगर मई लील करइ अकब्बर सोभागी ॥२१॥ दुहा ॥ परवतसरि जिउं मेरुगिरि, ग्रहगण मांहि चंद । सेषनाग सहु नागसरिं, जिउं सुरमांहि इंद ॥२२॥ सकल छत्रपति तिलकसम, एकदिन सभा मझारि । बोलइ अधिक उच्छाहसुं, वचन अमृत रसधार ||२३|| ढाल ॥ राग देसाष ॥ साह कहइ सुंणो वात इयारा, दोउं दूनिमई वात आसकारां । एक भले दूनीआदार भोगी, दूजे फकीर निरंजन योगी ॥२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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