Book Title: Anusandhan 2004 03 SrNo 27
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२७ अहीं पाठ ला.२ प्रमाणे शुद्ध लाग्या ते मूक्या छे, अने ब्रेकेटमां प्रथम ला. १ प्रमाणे अने पछी ला. २ प्रमाणे कडी क्रमांक आप्या छे.
आ ला.रनी प्रतिनी झेरोक्स नकल मने आ. श्रीविजयप्रद्युम्नसूरि महाराज तरफथी मळी छे. तेमणे ते कोबाना ज्ञानभण्डारमांथी मेळवी छे. प्रतिमां एकथी वधु कृतिओ हशे, तेम जणाय छे. प्रतिना प्रथम ७ पानांमां आ रास छे. ते पछी आरामनन्दनरास शरु थतो होवानुं आठमा पत्रथी लागे छे. मने ८ पत्रो ज मळ्या छे. कोबा संग्रहनो क्र. १३७२१ छे. तेओनो अत्रे आभार मानुं छु.
★★★ पं. दयाकुशलकृत - श्रीलाभोदयरास ॥ सरसति मति अतिनिरमली, आपो करी पसाय ।। जेसंगजी गुण गावतां, अविहड वर दिउ माय ॥१॥ नडुलाई नयरी भली, धन्य धन्य श्रीउसवंस । शाह कमाकुल चंदलु, सुर नर करई प्रसंस ॥२॥ धन कोडमदे जनमिउ, तपगछको सुलतान । अधिक अधिक तेजिं सदा, वाधइ युगह प्रधान ॥३॥ जस मुख शारद चंदलो, जीह अमीनो घोल । दंतपंति हीरा जसी, अधरस कुंकुमरोल ॥४॥ अति अणीयाली आंखडी, वांकी भमुह कमानि । सरल सकोमल नासिका, मोहइ भविक सुजाण ॥५॥ गजगति चालइ चालतु, सकल कलागुण पूर । गौतमसम गुरु जगि जयउ, जस अनोपम नूर ॥६॥ श्रीगुरु हीर सदा जयउ, तासु तणो ए सीस । रास रचुं रलीआमणो, प्रणमी जिन चउवीस ॥७॥
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