Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-२३ केवि कामत्थमुव्विग्गा केवि धम्मत्थमुज्जया । आगंतूण गुरुं केवि वंदंति य थुणंति य ॥३५॥ सणंकुमारिंदसमा य केवि, सुरा य संघस्स सुहाइकम्मा । अभव्वया केवि य संगमुव्व, बहुं जिणिंदस्स व दिति पीडं ॥३६॥ पडिणीओ नायपुत्तस्स गोसालोसुत्तभासओ । तस्सावि भत्तया देवा कुंडकोलियवारगा ॥३७|| सोहम्म-चमरिंदा वि केवि लोगाण दुक्खया । अहो ! देवाण किं नूण-महो ! देवविचित्तया ॥३८॥ आसाढायरियगुरू पुचि जीवाइधम्मफलसंको । पडिबोहिओ सुरेणं पच्छा नियसीसरूवेणं ॥३९॥ सुणिय सत्तविचित्तसरूवयं, विजयसिंहमुर्णिदसुभासिअं । सिहिकुमारमुणिव्व सुमाणसं वहइ जो स मुणी मुणिपुंगवो ॥४०॥
(द्वारं ६) ॥ जं जं जीवाण दुल्लं , नायपुत्तेण भासियं । भाविऊण मणे तं तं कुणसुप्पं पुण्णवासियं ॥४१॥ जहा मत्तो न याणाइ बहुसिटुं अणुसासियं । तहा मूढो न याणाइ अप्पाणं हिरिपासियं ॥४२।। मणुयत्त-सुखित्त-पवित्तगुत्त, गुरुतत्तजिणुत्त सुसुत्त गत्त । अपमत्त सुघत्त सुचित्त वित्त, वर सत्त जोग दुलहो सुसत्त ॥४३|| जह अमरगुत्तसाहू गुरुप्पओसेण दुल्लहं बोहिं ।। पत्तो करेइ तं तह धरणकुमारस्स तं मुणह ॥४४।। (द्वारं ७) ॥ सज्झायझाणसुयनाणमहिज्झमाणो, आया सुही अ जवरायरिसिव्व माणो । आया सुही य समयारससुद्धपाणो, मेयज्जओ धणमुणी य जहा समाणो ॥४५॥
(द्वारं ७(८) ॥
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