Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
April-2003
77
सबर :
पूजाविधिना शब्दो विशेसुहाली भेरव : कापडनी एक जातनुं नाम छे, जे कदाच मलमलने मळती
आवती हशे. (भेरव नाम अंगे श्री मावजीभाई सावला साथे वात थई त्यारे एमणे एक वधु संकेत सूचव्यो : भैरवी थाटना रागोमां चार स्वर कोमल आवे छे, ते परथी सुंवाळा कापडने 'भैरव' नाम कदाच मळ्युं होय? आने 'सखर' एम वांचवें जोईए. अर्थ : सुन्दर, श्रेष्ठ, उत्तम, नवाणु प्रकारी पूजामां 'सखरे में सखरी कोण....' आवे छे. कच्छी भाषामां आजे पण सखर =उत्तम एवो शब्द
प्रचलित छे. भावि : 'भावि तिम नाखीइ...' ए वाक्यनो संदर्भ जोतां "ठीक
लागे तेम, फावे तेम' एवो अर्थ जणाय छे. पासानी : बाजुनी, पडखानी (पाषाणनी नहि). डालरि : पहोळा मोढा, मोटा भागे लाकडानुं खाना जेवू पात्र.
कच्छीमां ढोरोने खाणदाण आपवाना लाकडाना पात्रने 'डालो' ज कहे छे. काठियावाडी शब्द 'डालामत्थो' पण याद
आवे. तीर्थयात्रा-चैत्यपरिपाटीना विषय पर अनेक जूनी रचनाओ मळे छे. आ रचनाओ ऐतिहासिक दृष्टिए बहु महत्त्व धरावे छे. आ अंकमां आवी एक कृति ‘समेतशिखर गिरि रास' छपाई छे. मारवाडी, गुजराती, बंगाली वगेरे भाषाओनी असर आमां वर्ताय छे. सेंजडी (ढाल ६, गाथा ४) शब्द काठियावाडी 'सेंजल'नी याद अपावे छे. 'खोअल' (ढाल ६, कडी ४)नो अर्थ 'ऊंडु' स्पष्ट जणाइ आवे छे. मराठीमां 'खोल' आ ज अर्थमां प्रचलित छे. आनुं मूळ कोक जूना देश्य शब्दमां कदाच होय.
_ 'स्वाध्याय' शीर्षक नीचे शीलचन्द्रसूरिए 'ललित-विस्तरा'मा उल्लेखित प्राचीन दार्शनिकोनां अने तेमना संप्रदायोनां नामो- तेमनी मान्यताना निर्देश साथे - उद्धृत करीने आप्यां छे. आवां केटलां मत-पक्ष-दर्शन भारतमां
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98