Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 85
________________ 80 अनुसंधान - २३ दूध -- भरेलो प्यालो मोकलीने 'आनी जेम छलोछल भरेला नगरमां हवे जग्या नथी' एवो संदेशो पाठववामां आव्यो, त्यारे तेना उत्तरमां पारसीओए ते दूधमां साकर उमेरीने पाछो ते प्यालो राजा पर मोकली आप्यो : एवा इंगित साथे के दूधमां जेम साकर भळी शके तेम अमे तमारा शहेरमां समाई रहीशुं. तात्पर्य एटलुं ज के जुदा जुदा युगे तथा सन्दर्भे घटती घटनाओमां केटलीक वखत केटलुं बधुं साम्य होय छे ! लोककथानो घाट घडाय त्यारे तेना पायामां आ प्रकारनी कोई घटित घटना ज धरबाती हशे ने ? २. आचार्य मल्लवादी ए जैन संघना प्रख्यात तार्किक अने वादी आचार्य छे. 'द्वादशार नयचक्र' जेवा प्रौढ ग्रन्थ साथे तेमनो नाळसम्बन्ध छे. आ ज नाम धरावता, नागेन्द्रगच्छीय एक आचार्य विक्रमना १३ मा शतकमां पण थया छे. ते स्तम्भनक - थामणाना स्तम्भनक पार्श्वनाथ चैत्यना संरक्षक मठपति जैनाचार्य हता. आ बन्ने मल्लवादीसूरि वच्चे आशरे ७००-८०० वर्षोनुं अन्तर होवा छतां, प्रबन्धकोश-कारे ते बन्नेने अभिन्न बनावी दीधा छे, अने बन्नेना प्रसंगोने प्रथम मल्लवादीना जीवनप्रसंग तरीके ज वर्णवी दीधा छे. 'मल्लवादी प्रबन्ध' वर्णवतां वर्णवतां ज्यारे वलभीभङ्गनी कथा आवे छे त्यारे, मल्लवादी (क्षमाश्रमण) सपरिवार त्यांथी 'हिजरत' करी गयानुं बयान प्रबन्धकारे आ प्रमाणे आप्युं छे : " एतच्च प्रथमं ज्ञात्वा मल्लवादी महामुनि: । सहितः परिवारेण पञ्चासरपुरीमगात् ॥६८॥ नागेन्द्रगच्छसत्केषु धर्मस्थानेष्वभूत् प्रभुः । श्रीस्तम्भनकतीर्थेऽपि सङ्घस्तस्येशतामधात् ॥६९ ||" (पृ. २३) आमां मोटी विसंगति तो ए छे के पांचमा - छठ्ठा सैकामां स्तम्भनक तीर्थनी उत्पत्ति के स्तम्भनकपार्श्व-प्रतिमानुं प्राकट्य पण गुजरातमां नहोतुं थयुं; ते तो ठेठ १२मा शतकमां अभयदेवसूरि द्वारा थयुं छे. आम छतां, प्रबन्धकारे आ स्थाने केम आवुं वर्णन कर्तुं हशे ? मजानी वात तो पाछी एछे के 'वस्तुपाल प्रबन्ध' मां, स्तम्भनकतीर्थ अने तेना अधिष्ठाता मल्लवादीसूरिनो वस्तुपाल जोडेनो प्रसंग प्रबन्धकारे विस्तारथी वर्णव्यो ज छे ! (पृ. १०९१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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