Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ 74 वळी 'जया' ते पछी आवे ज छे. 'चतुर्मुखमहावीरस्तवन' यमक जेवा शब्दालंकारथी सुशोभित अने भावसभर छे. कविए शब्दोनी योजना - संयोजना द्वारा श्रुतिमधुर रचना सर्जी छे. पाखण्डिस्वरूपस्तोत्र, कम्मबत्तीसी, त्रिलोकस्थितजिनगृहस्तव आ कृतिओ कोरी शास्त्रीय विगतोने काव्यमां वणी लेवाना प्रयासना उत्तम नमूना छे. नीरस आंकडाकीय विगतोने काव्यरूप आपवुं ए एक पडकार जगणाय. जैन कविओ द्वारा आवी कृतिओ मोटा प्रमाणमां सर्जाई छे. अनुसंधान-२३ 'आज्ञास्तोत्र' मां रचनाकौशल झळके छे. कथन चोटदार छे अने शैली रसिक छे. गाथा ५मां 'मइनिउणं' छे त्यां ग्रन्थकारे 'नेउन्न' शब्द वापर्यो होय एवी कल्पना आवे छे. 'मइनेउन्नमणोवमं' आम होय तो अर्थसंगति तो सधाय ज, साथे पुन्नं, पडिपुन्नं साथे श्रुतिसाम्य पण सधाय. कविनी शैली जोतां आ लाभ कवि जतो न करे. लिपिकार 'नेउन्न' ने स्थाने अजाणतां ज जाणीतो शब्द 'निउणं' लखी नाखे एवं बनी शके. अनुसन्धान- २२नुं विहंगावलोकन मुनि भुवनचन्द्र 'अनुसन्धाने' थोडा समयथी बहुरंगी कलेवर धारण कर्तुं छे. अंकगत कोईक सामग्रीने लगतुं चित्र आवरण पर आपवानी प्रथा आरंभाई होय एम लागे छे. आ प्रथा चालू रहे तेम इच्छीए. २२मा अंकनी प्रथम रचना श्रीहरिभद्रसूरिजी एक लघुकृति होय एवी शक्यता निर्मूल नथी. 'भवविरह' तथा समसंस्कृतभाषा - आ बे प्रबल सूचक चिह्नो छे; तदुपरांत, प्रतिना अंते 'श्री हरिभद्रसूरिकृतं' एवो स्पष्ट निर्देश छे, प्रति पांचसो वर्ष पूर्वेनी छे. गाथा ६मां 'स्वसमय' शब्द छे ते भ्रांतिजन्य होय एवी भीति रहे छे. 'स्व' शब्द समसंस्कृतमां ग्राह्य न थई शके. मारा ख्यालथी प्राचीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98