Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
April-2003
73
सफल नथी थयो. आर्यवेदना मन्त्रो जे आ अंकमां आप्या छे तेनी भाषा प्राचीन नथी, मध्यकालनी के ते पछीनी छे. 'तर्पण'ना अंते तो मुनिओने मिष्टान्न-वस्त्र आदिनुं दान करी पितृतर्पण करवानुं विधान छे. जैन मुनिओना मार्ग तथा जैन तत्त्वदृष्टि साथे एनो कोई मेळ नथी. संपादके नोंध्युं छे तेम, जैन जनताने अन्यत्र ढळती अटकाववाना हेतुथी आq गोठवायुं होय अने ते उपरांत यतिवर्गे पोताना लाभार्थे आq शरु कर्यु होय एवी पण संभावना खरी. आ समग्र मुद्दो ऐतिहासिक तपास मागे छे ए तो संपादकश्रीए पण नोंध्यु ज छे.
पृ. ३७. प्रीयते=प्रीतये
१८. नैवे(र्वे)द्यं = 'न वेद्यं' होई शके. वेद्यंनो अर्थ वेदनीय लइ शकाय.
'सरस्वती स्तोत्र'मां 'धूधूमि धूधरी' छे, त्यां 'ध'नो 'घ' वांचवो जोईए - घूघूमि घूघरी.
___'विज्ञप्तिका संग्रह' मांनी बधी ज विज्ञप्तिओ एक ज कर्तानी रचेली होवानी पूरी शक्यता छे. शैलीनुं अने विषयतुं साम्य तो खुल्लु ज छे, वधुमां बधी रचनाओ एक ज प्रतिमां छे. कर्ता- कवित्व स्वयंप्रकाशित छे ज, गुरुभक्ति, गुणानुराग, श्रद्धा आदि धर्मभावो पण उत्कट रूपे गूंथाया छे. प्रथम विज्ञप्तिमां थोडा मुद्रणदोषो छे
गाथा ३. कुमयपरुवग =कुमयपरूवग
गा. ६. पंचसमइ =पंचसमिइ
चारित्रचूला महत्तरा विज्ञप्ति ध्यानार्ह छे. जेमनी स्तुति ए समर्थ मुनि कवि रचे ते साध्वी केवी असामान्य योग्यता धरावतां हशे तेनी कल्पना विज्ञप्तिमांथी आवी शके.
गा. ५ मां 'जयसि' छे त्यां 'जयति' वधु योग्य ठरे. गा. ६मां 'नय (जय)' छे त्यां 'जय' करतां 'नय' ज वधु संगत छे - 'नतसुखकारिणी'.
१. निर्वेदी-वेदरहित, तेनी समक्ष, वेदरहित थवा माटे धराय ते नैवेद्य, आवी
अर्थयोजना पण प्रसिद्ध-प्रचलित छे. (सं.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98