Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ नाना-छन्दोमय-श्रीनेमिनाथस्तवन सं. मुनि विमलकीर्तिविजय संस्कृत-छन्दःशास्त्रना विविध छन्दोनो उपयोग करी, उत्तम अलंकारो तथा हार्दिक भावोथी गुंफित आ स्तवनमां श्रीनेमिनाथ भगवाननी स्तवना करवामां आवी छे. आ स्तवननी विशेषता ए छे के कर्ताए छन्दोनां नामो पण स्तुतिमां ज विविध रीते जोडी दीधां छे अने मुख्यतः अप्रचलित छन्दोनो ज उपयोग कर्यो छे जे तेमनी भाषा, छन्दःसाहित्य तथा काव्यविषयक कुशलता दर्शावे छे. __ आ स्तवनमां कर्ताए मात्रावृत्त तथा वर्णवृत्त-एम बंने प्रकारना छन्दो वापर्या छे. जो के मात्रावृत्त छन्दो ओछा वापर्या छे. जेम के - पथ्यावक्त्र (श्लो.१), औपच्छन्दसक (श्लो. ४), आपातलिका अपरान्तिका (श्लो. ७) अने औपच्छन्दसक-अपरान्तिका (श्लो. ११). बाकीना श्लोको वर्णवृत्तछन्दोमां ज रच्या छे. तेमां पण ४२मा श्लोकना चार चरणमां चार जुदा छन्दो प्रयोजी कमाल करी दीधी छे. __ आ स्तवन एक ज पत्रमा लखायेलुं छे. अक्षरो अत्यंत सुन्दर-स्पष्ट तथा मरोडदार छे. सहेज-साज अशुद्धि रही गई छे. कर्ता तथा लेखन संवत् विशे कोई उल्लेख नथी. छतां लखावट जोतां प्रायः १६मा सैकामां लखाई होय तेवू अनुमान थई शके छे. छेल्ला श्लोकमां लक्ष्मी-छन्द वापर्यो छे. ते परथी एवं अनुमानी शकाय के कोई लक्ष्मीकल्याण-लक्ष्मीकल्लोल जेवू लक्ष्मी-युक्त नाम धरावतां मुनिए आ स्तवननी रचना करी होय. अहीं छन्दोनां नामो हेमचन्द्राचार्यविरचित 'छन्दोनुशासन'ना आधारे आपवामां आव्यां छे. आ संपादनमां मुनि कल्याणकीर्तिविजयजीए सहाय करी छे. ★★★ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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