Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 54
________________ April-2003 घणी करइ ते रोगचिंता आर्तध्यान कहीजइ |३| चउथो अग्रशोच आर्तध्यान. जे मनमइ आगला कालरो सोच करइ । जे इण वरस ए काम करस्यां आवतइ वरस उ काम करस्यां इम चितवइ । अथवा दान शील तपनो फल मांगइ जे में इण भवमइ ए तप कीधो तेहनो मोनइ चक्रवर्ति इंद्रनी पदवी होज्यो । ए आगला भवनी वांछा ते पिण अग्रशोच आर्तध्यान जाणवो । 49 ए आर्तध्यानरा च्यार भेद कह्या । ए आर्तध्यान तिर्यंच गतिनो कारण छइ । गुणठाणा पांच तथा छ तांई आर्तध्यानना परिणाम उपजइ । हिवरं रौद्रध्यान कहइ छइ । रुद्र कहतां महाकठोर परिणाम चतवइ ते रुद्रध्यान कहीजइ । ते रुद्रध्यानना पाया च्यार छइ । हिंसानुबंधी १ मृषानुबंधी २ चोरानुबंधी ३ परिग्रहरक्षणानुबंधी ४ । ए च्यार पायाना नाम कह्या । हिवर पहिलो हिंसारौद्रध्यान कहइ छइ । जे जीव हिंसा करी हर्ष पामइ । अथवा हिंसा करता देखी खुशी होवइ । अथवा संग्रामनी वातनी अनुमोदना करइ ते हिंसारुद्रध्यान कहीजइ |१| मृषानुबंधी रौद्रध्यान जे कूड बोलइ मनमइ हर्ष वेदइ । जे मइ किसो एक कूड केलव्यो छइ । जे माहरइ कूडरी खबर किणहीनई पडी नही । एहवो मृषारूप परिणाम ते मृषारुद्रध्यान कहीजइ |२| तीजो चौर्यरुद्रध्यान जे चोरी करी ठगाई करी मनमइ खुसी होवइ । जे मुझ सरिखो जोरावर कुण छइ । जे हूं पारका माल खाउं । एहनउ जे परिणाम ते चोररुद्रध्यान जाणिवो | ३ | हिवइ चउथो परिग्रहरक्षण रुद्रध्यान । जे परिग्रह धनधान्य परिवार घणो वधवारी लालच होवइ । जे धनरइ अनई कुटंबरइ वासतइ हरकिसो पाप करइ । अथवा परिग्रह घणो जुड्यां अहंकारमइ मगन ते परिग्रहरक्षण रुद्रध्यान कहीजइ |४| ए रुद्रध्यानरा चार पाया कह्या । ए रुद्रध्यान नरकगतिनो कारण छइ । महा अशुभ कर्मनो कारण छइ । ए रुद्रध्यान पांचमइ गुणठाणइ तांई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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