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च्यार ध्यान विचार लेश
श्री विक्रमपुर नगरमा (हालना बिकानेरमां) वि.सं. १७९९ना वैशाख सुद छठना दिवसे भोज नामना विद्वान द्वारा लखायेल 'च्यार ध्यान विचार लेश' हस्तप्रत २ पानांनी छे. अक्षरो सुवाच्य छे अने बन्ने पानामां वच्चे एकसरखी डिझाइन उपसे ते रीते लखाण सुशोभित छे.
सं. डॉ. मालती के. शाह
जैन परंपरामा रजू थयेल ध्यानना चार प्रकारनुं वर्णन आ प्रतमां रजू थयेल छे. १. आर्तध्यान, २ रौद्रध्यान, ३. धर्मध्यान अने ४. शुक्लध्यान. आ दरेक ध्यानना चार-चार पायानी समजूती आप्या बाद गुरु- - शिष्यना संवादरूपे केटलीक शंकाओनुं समाधान करवामां आवेल छे.
आ सिवाय एक अन्य दृष्टि पण ध्यानना चार प्रकार अहीं रजू कर्या छे. १. पदस्थ, २. पिंडस्थ, ३. रूपस्थ, ४. रूपातीत आ चारेय प्रकारनां ध्यान मोक्षप्राप्ति माटे कारणभूत छे.
धर्मध्याननी चार भावना रजू करी छे. १. मैत्री, २. प्रमोद, ३. मध्यस्थ अने ४. दया.
आ प्रतना अन्त भागमां हिन्दीमां चार दोहा आपेल छे. तेमां त्रीजो अने चोथो प्रसिद्ध हिन्दी कवि बिहारीना छे. आ दोहा अहीं शा माटे आप्या छे ते ख्यालमां आवतुं नथी. आ चारेयना अर्थ आ प्रमाणे छे.
२.
१. व्यक्ति देखीती क्रिया एक करे छे अने तेनुं फळ एटले के तेना मननो भाव जुदो होय छे. जेम के पतिने ज्यारे पत्नीने बोलाववी होय त्यारे ते नाम पोताना बाळकनुं बोले छे, पण तेना मनमां बाला एटले के पत्नीने बोलाववानो भाव छे.
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लालस (एटले लालच) लाळ, लबाडता आ त्रण लला जेनामां छे तेना हाथमां लाकडी आवी गइ छे (अर्थात् ते वृद्ध थइ गयो छे) तोपण तेना हैयामां लोभ छे. आवी वृद्धावस्था (वडपण) बाळपण ( ललपण) जेवी
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