Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 71
________________ 66 जोवनमे दीक्षा दोहेली रे, दोहीलो साधु आचार, लघु वेसे कोण आदरे रे, दुकर संजम भार ॥ २१ ॥ रत० अनुसंधान - २३ सुण सुदर सुंदरि तुझ मेरे जेम श्री जंबुकुमार. तेम हुं संजम आदहं रे, अनुमत द्यो श्रीकुमार (श्रीकार ) ॥२२॥ रत० श्रीबाई जंबु कहेइ रे, परणा आठे नार. तार पछी संजम आ[द]र्या रे, तेम तमे करो रतनकुमार ||२३|| रत० अमारे तो परणवुं नहीं रे, आदरु साधु आचार, ते तो तमे जाणजो रे, कहे श्रीबाई नार, ॥२४॥ रत० वेवसाल न मेलीइं रे, नहीं कसो जंजाल, पालव लागी पीआ तम तणे रे, ते तो जाणे बालगोपाल ॥ २५ ॥ रत० पालव लागीने परहरी रे, नेमे राजुल ना[र] तेम हुं संजम आदरु रे, कहो तुज कंत विचार ||२६|| रत० हाथ जोडीने विनवु रे तमे जोवो ते मोरा साम, जाणु रे रचना एही रे तो मुझ दाखो ठाम ||२७|| रत० मुझ जनके सुदरी रेजो सुखसमाद श्रीबाई कहे तम वीना रे, तो कोण देखे घरबार ? ॥२८॥ रत० तो तमे पीहर थोभजो रे, आपु द्रव्य अपार, दान पुन लखमी तणो रे, लाहो लेजो संसार ॥ २९ ॥ ० पीहर मीठु तीहां लगे रे, जीहां जुओ आणानी वाट दोष चडावे लोकडा रे, पडे मननी भरांत ||३०|| रत० कुवारा कुवारा कुवांरीका रे सो घर सो भरतार आदरजो मन मानतो रे जे जाणे हेतकार ॥३१॥ रत० तमे आये भवसाहेर तरे रे मुझ राखे छे संसार. पियु तोरे प्रेम न जाणीओ रे स्वारथिउ भरतार ||३२|| रत० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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