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April-2003
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जुड्यां
भेगो को गुणठाण
गुणस्थान--आत्माना गुणविकासनी भूमिका तहति
तथास्तु-'ते प्रमाणे ज छे' एम सरदहइ
श्रद्धा करे द्रव्य छनो
जैनदर्शनमा स्वीकृत छ द्रव्योनुं नय-प्रमाण-निक्षेपा जैन तत्त्वज्ञानना पदार्थोनां नाम छे. सिद्धस्वरूप मुक्त जीवनुं स्वरूप निगोदस्वरूप अतिअव्यक्त चेतनावाळी जीवनी अवस्था ते निगोद. स्याद्वाद
अनेकान्तवाद निश्चय व्यवहार प्रत्येक वस्तुने जोवानी बे जैन दृष्टिः निश्चयनय,
व्यवहारनय संसारनावस्थामइ संसारनी अवस्थामां इणांसू
एथी शुधबुधि
शुद्ध बुद्ध अबंधक अनुदय कर्मना बंध, उदय, उदीरणा-रहित अनुदीरक अवेदी
वेद विनाना असखायी
सखा-मित्रसंबंधरहित अलेशी
लेश्यारहित अनवगाही
अवगाहनारहित लोकालोकापायक लोक-अलोकने छोडनार चउदउ राज मान १४ 'राज' ना मापवाळो त्रिछो
तिर्लो-मध्य वैशाख संस्थान केड पर बे हाथ राखीने ऊभेला मनुष्यनो आकार
पोतानी ध्यानंतरिका
शुल्लध्यानना ४ भेदनो मध्यान्तर योग रंधइ
व्यापार बंध करे
आपरी
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