Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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April-2003
उड्डुं चउदस रज्जू दीहो पुण वित्थरेणिमो लोगो । रज्जू कत्थ य दुन्निय कत्थ य जा सत्तरज्जूओ ॥ ११२ ॥ नरयासुरवासेहि असंखदीवोदहीहि संजुत्तो । छदव्वसमाहारो भाविज्जइ एस जियलोओ ॥११३॥
अह अन्नहा सरूवं इमस्स लोयस्स पिच्छइ (ए) विबुहो । भगिणी भवेइ भज्जा जणणी वि य होइ तह भज्जा ||११४ || मरिऊण पिया पुत्तो पउत्तपुत्तो य होइ तह जणओ । पुत्ती तह य दुहित्ती होइ य भज्जा सवक्की य ॥११५॥
चुलणी पुत्तं मार खायइ वग्घी सुकोसलं पुत्तं ।
अणवत्था संसारे अहो अहो ! कम्मजीवाणं ॥ ११६॥ ( दारं २६ (२८)) ॥
दुलहो माणुसजम्मो दसदितेहिं भाविओ लद्धो ।
तत्थ वि य धम्मजुग्गं दुलहं खित्तं च जिणधम्मो ॥११७॥
दुलहं सावयगुत्तं दुलहं आरुग्गमाउयं बुद्धी ।
दुलहं सुधम्मसवणं गुरुसद्धा धम्मसामग्गी ॥ ११८ ॥ ( दारं २७ (२९) ॥ सम्मं सम्मद्दंसण-नाणचरितं च भावणाओ य ।
वेरग्गभावणा वि य परमा तित्थयरभत्ती य ॥ ११९ ॥
एसो जिणेहि भणिओ अनंतनाणीहिं भावणामइओ । धम्मो उ भीमभववण - सुजलियदावानलब्भूओ ॥१२०॥ ( दारं २८(३०)) || निच्चं मणे समगुणेहिं पवड्ढमाणो, जो भाविऊण य जिणाण गुणोवहाणो । आया सुही समजिणाण नमसमाणो दिवंतओ य रणसीहसुयप्पहाणो ॥ १२१ ॥ ( दारं २९ (३१)) |
जिणभत्ती सिवगंती जिणभत्ती दुरियदुग्गवहदंती । तित्थयरत्तपवित्ती जेहिं कया ताण सुहपंती ॥१२२॥
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