Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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April-2003
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अप्पोवहिमुवगरणं निच्छय-ववहारसुत्तमाहरणं । उस्सग्गं अववायं जाणंतो जीव ! भय चरणं ॥१३४।। आया सुही चरणसित्तरिमादयाणो, सो वा दुतीसपयजोग्गमणुग्गहाणो । आया दुही भवइ निग्गुणसंनिहाणो, आया दुही य बहुकूडसुयाभिहाणो ॥१३५।। आया सुही हवइ साहुपहाणुजाणो आराहणाउ गुणचंदमुणीवमाणो । वेरग्गओ य नमिरायरिसिव्व धम्मं छड्डइ जो न हरिचोइय इत्थ सम्मं ॥१३६।।
___ (दारं ३२(३४)॥ रिसहो महातवस्सी महातवस्सी य वीरजिणनाहो । चक्की सणंकुमारो बाहुबली तह य हरिकेसी ॥१३७।। गोयम महातवस्सी महातवस्सी य ढंढणकुमारो । अज्जुणमालागारो विसल्लिया सुंदरी चेव ॥१३८॥ जंघा-विज्जाचारण-विण्हुकुमारो महातवस्सी य । सिवओ धणोणगारो महाबलो तह य बलदेवो ॥१३९।। इच्चाइतवस्सीणं नमो तिहुयणे जसस्सीणं । सरिऊण तवं तेसिं कुणसु तवं जीव ! समसुहयं ॥१४०॥ आया सुही [प]वरचित्ततवोवहाणो, नायं च नंदणभवे जिणवद्धमाणो । आया दुही मुणिजणाइ दुगंछमाणो, अक्खाणयं सुभमई-धणपुत्तियाणं ॥१४१॥
(दारं ३३(३५))॥ दुविहो परोवयारो दव्वे भावेण होइ जयसारो । पढमो स णाइ (सुयणाणाइ?) जं उवयरणं धम्मिजीवाणं ॥१४२।। नाणेण दंसणेणं चरणेण य भावओ य धम्मेणं । धम्मोवगरणएणं उवयरणं धम्मिजीवाणं ॥१४३।। रिसहो दुहावि लोए झायव्वो तिहुयणस्स उवयारी । सव्वकला सिप्पसयं दाउं लोआण उवयरियं ॥१४४॥
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