Book Title: Anusandhan 2003 04 SrNo 23
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ चार जिनस्तुतिओ सं. मुनि धुरन्धरविजय अत्रे चार जिन स्तोत्र आपवामां आवे छे. आमां बे स्तोत्र सम्बन्धी (कुटुम्ब ) नामगर्भ स्तोत्रो छे, अने बे स्तोत्रो खाद्यपदार्थनामगर्भ स्तोत्र छे. प्रथम आदिनाथस्तुति वा लब्धिसागरना शिष्य पं. भक्तिसागर गणीकृत छे, ते शिवपुरी (म.प्र.) संघना श्रेयार्थे रचेलुं छे. बीजुं मगसी पुर ( मक्षीजी) मण्डन पार्श्वनाथनुं स्तवन पं. राजसागरशिष्य रविसागरकृत छे बन्ने स्तोत्रोमां आवतां सम्बन्धीनामो जेवा शब्दोने Black टाईपथी आप्या छे, जेथी पाठकने तरत खबर पडी जशे. त्रीजुं स्तोत्र युगादिनाथविज्ञप्तिनुं सुखभक्षिका ( खाद्य पदार्थ) गर्भित स्तोत्र ते पण पं. रविसागरकृत छे. आ रविसागरजी तपगच्छे हीरविजयसूरि परिवारे पं. राजसागरना शिष्य छे. बीजुं तथा त्रीजु ए बन्ने स्तोत्र तेमनी ज रचना छे. चोथुं वीरजिनस्तोत्र पण सुखासिक गर्भित खाद्यनामगर्भित छे. तेनी रचना वा. धर्मसागरगणिशिष्य वा लब्धिसागरजी शिष्य उपाध्याय ने मिसागरनी छे. आपणी रोजिंदी लोकबोलीना प्रयोगना शब्दोने आ रीते गोठवीने अने गुंथीने विद्वान कविओए संस्कृत भाषा पासे जे काम लीधुं छे ते अजबगजबनुं छे. आमां प्रथम स्तोत्र धरावतुं पानुं उज्जैनना भंडारनुं छे, अने अन्य ३ स्तोत्रो धरावतुं पानुं वडोदरानी युनिवर्सिटीना संग्रहनुं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98